कुछ किसान ने रिले क्रोपिंक का नाम सुना होगा और कुछ किसान इससे अनजान होंगे। जैसे रिले रेस होती है। जिसमें एक आदमी दौड़ता हुआ आता है दूसरा साथ दौड़ते हुए बेटन लेता है और पहला बाहर हो जाता है वैसा ही कुछ यहाँ होता है। इसमें किसान यह काम फसल के साथ करता है। खेत में एक फसल उगाई उसके कुछ समय बाद दूसरी फसल को बो दिया।
लेकिन कुछ समय तक दोनों फसल साथ रहेंगी फिर पहली फसल निकल जायेगी और बाद में दूसरी फसल। आजकल छोटे और सीमांत किसानो के लिए ये तरीका काफी लाभकारी सिद्ध हो रहा है। जहाँ कम खर्च और सिमित संसाधनों के साथ कुछ अतिरिक्त आय ले सकता है। तो आइए जानते हैं कैसे कृषि जागृति के इस पोस्ट में विस्तार से।
उत्पादकता में वृद्धि? रिले क्रॉपिंग खेती में किसान एक ही सीजन में एक ही खेत में दो फसलें उगाता है, लेकिन समय डिफरेंट रहती है। जिससे भूमि की उपजाऊ क्षमता बढ़ती है। यह सीमित भूमि और कम संसाधनों वाले छोटे किसानों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।
आय में वृद्धि: एक ही सीजन में दो फसलें होने से किसान की आय बढ़ती है।
खर्च में बचत: दूसरी फसल के लिए होने वाला जुताई का खर्च बच जाता है। और कीटनाशी दवाइयों और खाद का अतिरिक्त खर्च नहीं करना पड़ता है।
कीट और रोगों के प्रकोप में कमी: खेत में फसलों की विविधता कीटों के जीवन चक्र को बाधित करती है, जिससे उनके लिए स्थापित होना कठिन हो जाता है।
संसाधनों का कुशल उपयोग: रिले क्रॉपिंग खेती में पानी, सूर्य के प्रकाश, उर्वरक के बेहतर उपयोग सुनिश्चित करती है। लंबी मुख्य फसल, छोटी रिले फसल को छाया प्रदान करती है और उसकी सुरक्षा करती है जिससे फसल प्रतिकूल परिस्थितियों से बची रहती है।
रिले क्रॉपिंग को कौन अपना सकता है: रिले क्रॉपिंग खेती की सुविधा और परिस्थिति संसाधनों को देखकर कोई भी किसान अपना सकता है।
लहसुन के साथ मिर्च, लहसुन के साथ इसबगोल, उड़द के साथ तुलसी और उसके साथ इसबगोल, गेहूं के साथ अगेती सब्जियां, मिर्च के साथ खरबूजा, मक्का के साथ लोबिया और आप भी आपके यहां के क्षेत्र में आप अपनी सुविधा के आधार पर रिले क्रॉपिंग खेती थोड़े क्षेत्र में करके देख सकते है। रिले क्रॉपिंग छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक टिकाऊ और अतिरिक्त आय का विकल्प प्रदान करती है। Yatin Mehta
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