लो टनल तकनीक एक छोटे प्रकार की कम ऊंचाई वाली गुफानुमा संरक्षित संरचना है जिसे मुख्य खेत में फसल की बुवाई के बाद प्रत्येक लाइन के ऊपर कम ऊंचाई पर प्लास्टिक की चादर से ढक कर बनाया जाता है। मुख्य रूप से यह एक छोटा ग्रीन हाउस होता है जो कम लागत से आसानी से तैयार किया जा सकता है। प्लास्टिक की चादर से ढकने के कारण टनल का तापमान बाहर की तुलना में ज्यादा होता है।
इन टनल में सब्जियों की बुवाई के बाद ड्रिप पद्धति से सिंचाई की जाती है। यह फसल को कम तापमान से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए बनाई जाती है। गर्म शुष्क क्षेत्र और उत्तर भारत के मैदानी भागों में सब्जियों की बेमौसम खेती के लिए बहुत उपयोगी है। गौरतलब है कि जहां सर्दी में रात का तापमान लगभग दो माह तक 5 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे राहत है।
क्या है लो टनल तकनीक
यह तकनीक दिल से दिल मिलाने का भी काम कर रहीं है। कुछ साल पहले तक दौसा, करौली और जयपुर जिले तक सिमटे रहने वाले उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश के किसान अब रेगिस्तान को अपना आशियाना बना चुके है। सैकड़ों परिवार सब्जी उत्पादन के लिए यहां आकर बस चुके हैं। बीकानेर जिले के सुखदेवपुर गांव के किसान कमल सिंह ने बताया है कि यहां जमीन काफी सस्ती है। क्योंकि कोविद-19 के संक्रमण के बाद से जमीन की लीज दर में बड़ी गिरावट देखने को मिली है।
पहले प्रति बीघा के 12 से 15 हजार रुपए मिल जाते थे। लेकिन अब 8 से 9 हजार रुपए बीघा में जमीन लीज पर मिल रही है। ऐसे में दूसरे राज्यों से किसान आकार यहां तरबूज, खरबूज, ककड़ी, लौकी, तुरई आदि सब्जी फसलों की खेती कर रहे है। सब्जी उत्पादक किसान नौशाद खान का कहना है कि प्रति हैक्टेयर तीन से चार लाख रुपए की आय सब्जी उत्पादन से मिल जाती है।
मैं परिवार सहित यही आकार बस गया हू। कमोबेश कुछ ऐसी ही कहानी है जयपुर के फुलेरा गांव के किसान सत्यनारायण की। जो दशक से ज्यादा समय से लो टनल तकनीक का उपयोग करते हुए सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं। उनका कहना है कि पहले रबी खरीफ फसलों के उत्पादन तक सीमित था। लेकिन सब्जी उत्पादन से जुड़ने के बाद आमदनी का ग्राफ काफी बढ़ चुका है।
लो टनल तकनीक का दिन प्रति दिन विस्तार
लो टनल तकनीक गर्म शुष्क क्षेत्र देश के लगभग 31.7 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ। जिसका सबसे ज्यादा फैलाव पश्चिमी राजस्थान (19.62 मिलियन हैक्टेयर) क्षेत्र में है। यह क्षेत्र विस्तार करते हुए उत्तर-पश्चिमी गुजरात में 6.2 मिलियन हैक्टेयर में भी फैल गया है। वही दक्षिण-पश्चिमी पंजाब की बात करे तो यह क्षेत्र 1.45 मिलियन हैक्टेयर में फैल गया है।
इसके बाद दक्षिण पश्चिम हरियाणा की बात करे तो यह क्षेत्र 1.28 मिलियन हैक्टेयर में फैल गया है। इसके बाद आंध्र प्रदेश में 2.16 मिलियन हैक्टेयर, कर्नाटक में 0.89 मिलियन हैक्टेयर और महाराष्ट्र में 0.13 मिलियन हैक्टेयर में भी फैला है। इस लिहाज से राजस्थान के लिए यह तकनीक खास है। क्योंकि यहां गर्मी जब जलाती है तो 0 डिग्री ठंड हांड कपकपाती है। ऐसे में फसल उत्पादन हमारे किसान भाइयों के लिए टेढ़ी खीर बन जाती हैं।
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