कृषि जागृति

सरकार द्वारा किसानों पर क्यों बढ़ाया जा रहा है इतना कर्ज!

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krishijagriti5

मजबूत होती अर्थव्यवस्था का एक पहलू यह भी कि किसानों पर साल दर साल कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। इस दिशा में भी दूरगामी योजना बनाने की जरूरत दिखाई पड़ती है। किसानों के हालात ऐसे ही बने रहे तो किसान पर कर्ज के बोझ तले दबते जायेंगे। जिसका खेती पर विपरित प्रभाव देखने को मिलेगा। यह तथ्य परेशान करने वाला है कि आजादी के बाद भी देश का किसान कर्ज के जाल से मुक्त नहीं हो पाया है। पहले वह साहूकारों और एजेंटों का शिकार थे लेकिन अब राष्ट्रीय और सहकारी बैंकों के कर्जजाल में उलझे हुए है।

ये पुरानी कहावत अप्रासंगिक नहीं हुई है कि किसान ऋण में पैदा होता है, ऋण में जीता है और अपनी संतान के लिए ऋण छोड़कर दुनिया से चला भी जाता है। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक यानी नाबार्ड की हालिया रिपोर्ट चौंकाती है कि देशभर के किसानों पर 21 लाख करोड़ का कर्ज शेष है। सबसे बड़ी चिंता की बात तो पंजाब के किसानों के लिए है। जिसके 89 फीसदी किसान कर्ज के जाल में फंसे है। ऐसे में देश में लगातार होने वाली किसानों की आत्महत्याओं का कारण समझना कठिन नहीं है।

दरअसल यह ऋण देश के राष्ट्रीयकृत बैंकों, निजी बैंको, सहकारी और आंचलिक बैंको द्वारा दिया गया है। आंकड़े बता रहे हैं कि साढ़े पंद्रह करोड़ खाताधारकों में से प्रत्येक पर एक लाख पैंतीस हजार का कर्ज चढ़ा हुआ हैं। यह आंकड़ा तो सिर्फ बैंको का है। यदि इसमें साहूकारों, दूसरे बिचौलियों और किसान की खड़ी फसल पर कर्ज देने वाले आढातियों का कर्ज भी जोड़ दिया जाए तो स्थिति भयावह रूप में सामने आ सकती है। यह स्थिति साफ बताती है कि किसान के लिए खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है।

जिसके चलते बड़ी संख्या में किसान आए दिन खेती छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। कहने को तो किसानों की आय दुगनी करने के वायदे हुए थे। लेकिन, वास्तविक स्थित देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि खेती जीवन निर्वाह की उपज देने में भी विफल रही हैं। जाहिर है कि किसान के लिए खेती लाभकारी नहीं रही तभी उसे बार बार कर्ज लेकर घाटे को पूरा करना पड़ रहा है। जो इस कृषि प्रधान देश के लिए गंभीर चुनौती मानी जा सकती है। दरअसल, किसानों के कर्ज में डूबने की बड़ी वजह प्राकृतिक आपदाओं से खेती को होने वाले नुकसान भी है।

ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभावों ने किसानों की उपज को बुरी तरह प्रभावित करना शुरू कर दिया है। वही दूसरी ओर खाद, बीज, सिंचाई के साधनों और पेट्रोलियम पदार्थ की कीमतों में तेजी ने किसान की खाद्यान्न उत्पादन की लागत को बढ़ाया है। जिसके चलते उसका मुनाफा घटा है और खेती जीवन निर्वाह का साधन नहीं बन पाई है। यही वजह है की सारे देश में किसानों के कर्ज की स्थिति खराब हुई है। यूं तो कर्जदार खाताधारकों की संख्या तमिलनाडु में अधिक है।

लेकिन प्रति खाताधारक के औसत के हिसाब से पंजाब पहले स्थान पर है। यहां के किसानों पर लगभग 89 फीसदी किसान कर्ज से ग्रस्त है। विडंबना यह है कि पंजाब नीपने जीडीपी का 53 फीसदी कर्ज ले रखा है। जबकि, देश के रिजर्व बैंक के नियमों के अनुसार किसी भी राज्य का कर्ज उसके सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में तीन फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। निसंदेह, यह स्थिति बेहद चिंताजनक है।

कमोवेश दूसरे राज्यों में भी स्थिति चिंताजनक ही है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, केरल और आंध्र प्रदेश के किसानों पर भी एक लाख करोड़ रुपए से अधिक कर्ज बकाया है। लगभग 2.95 लिए रुपए प्रति खाताधारक के औसत कर्ज के मामले में पंजाब पहले स्थान पर है तो 2.29 लाख रुपए के साथ गुजरात दूसरे स्थान पर है। वही दूसरी ओर हरियाणा और गोवा के प्रति खाताधारक किसान पर दो लाख से अधिक कर्ज है। विडंबना है किसानों की कर्ज से मुक्ति के लिए गंभीर प्रयास शासन प्रशासन के स्तर पर नहीं हो रहे हैं।

यदि प्राकृतिक आपदाओं और मौसम की मार से किसानों को राहत दिलाने के लिए गंभीर प्रयास किए जाएं तो किसानों के कर्ज का बोझ किसी हद तक कम हो सकता है। निश्चित रूप से किसानों के कर्ज माफी भी समस्या का अंतिम समाधान नहीं है। विगत के अनुभव अच्छे नहीं रहे हैं। जरूरत इस साल की है कि किसान की मासिक आय सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाए।

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