किसानों के आंदोलन के समय देश भर में विभिन्न राय और मतभेद देखने को मिले। यह सामान्य है कि जब बड़ी सार्वजनिक आंदोलन होते हैं, तो लोगों के विचार विभिन्न हो सकते हैं और यहां तक कि कुछ लोग उन आंदोलनों का विरोध भी कर सकते हैं। इसे किसान आन्दोलन का नाम देकर हमलोगों ने किसानों को बदनाम कर दिया है।
ये किसान नहीं, किसानो को लूटने वाले गिरोह हैं। ये नहीं चाहते कि किसानों का विकास हो और इनकी दुकान बंद हो जाए। इन्हें पहले विपक्षियों का समर्थन मिल रहा था और अब तो खालिस्तान समर्थक भी इससे जुड़े हुए हैं। किसान आन्दोलन में महिला के साथ बलात्कार और कल ही तालीबानी ढ़ंग से सेवादार की हृदय विदारक हत्या, क्या किसान करेंगे?
और सारे देश के ठेकेदारों के मुंह में दही जम गयी है। आमतौर पर, जब किसी सामाजिक या राजनीतिक आंदोलन का समर्थन या विरोध होता है, तो लोगों के बीच तनाव और असहमति हो सकती है। इससे उन्हें गालियों और देशभक्ति के आरोपों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, हर किसी का अधिकार होता है कि वे अपने विचार और विपरीत राय प्रकट करें।
जब किसानों ने अपने आंदोलन की शुरुआत की, तो इसका मतलब यह नहीं होता कि सभी लोग उनके विरोध में थे या उन्हें गालियां दे रहे थे। विभिन्न राजनीतिक दल, सामाजिक संगठन, और व्यक्तियों के बीच विचारधारा के अंतर से विपरीत प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं। यह एक आम दृश्य है जो सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों के दौरान देखा जा सकता है।
एक सामाजिक आंदोलन या किसी भी आंदोलन के बारे में सही या गलत कहने की प्रक्रिया संवेदनशील हो सकती है और इसे भारतीय समाज में व्यापक चर्चा के आधार पर देखा जाना चाहिए।
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