केला ऐसा फल है जिसकी तुड़ाई लगभग पूरे वर्ष होती है। केला एक महत्वपूर्ण नगदी फसल है। केले की एक हेक्टेयर खेती में लगभग 3 लाख रुपए की लागत आती है, और अगर सही तरीके से खेती की जाए तो इतनी ही खेत से लगभग 6 से 8 लाख रुपए का मुनाफा भी हो सकता है। भारत में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, केरल, बिहार, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, मेघालय और मध्य प्रदेश मुख्य केला उत्पादक क्षेत्र हैं।
महाराष्ट्र में जलगांव, बिहार के हाजीपुर और यूपी के बाराबंकी-बहराइच में बड़े पैमाने पर केले की खेती होती है। ड्वार्फ केवेंडेश समूह के केले की घौद में औसतन 10 से 15 तक हत्थे होते हैं, लेकिन किसान को चाहिए कि वो नीचे के कमजोर वाले फल तोड़ दे, ताकि ऊपर की फलियां मोटी और लंबी हो सकें औसतन एक पौधे की घौद (केले के बंच) में 10 हत्थे (पंजे) होने चाहिए।
एक औसत केले से 35 किलो की बंच मिलनी चाहिए। घौद (बंच) में लगे सभी केला के फल स्वस्थ, सुंदर, सुडौल हो इसके लिए आवश्यक है की घौद (बंच) का उचित प्रबंधन किया जाय। घौद (बंच) में अंतिम हथ्था के निकलने के लगभग एक हफ्ते बाद, नर फूल को 20 से 25 सेमी लंबी डंठल के साथ छोड़कर काट देना चाहिए।
इसके बाद 2% सल्फेट यानि 20 ग्राम पोटेशियम सल्फेट को प्रति लीटर पानी में घोलकर, इसमे स्टीकर मिलाकर गुच्छों पर छिडकाव करने से घौद के सभी फलों में अच्छा विकास होता है, 20 से 25 दिनों के बाद पुनः इसी घोल से (2% पोटेशियम सल्फेट) छिडकाव करना चाहिए। ऐसा करने से फलों के आकार, गुणवत्ता को बढ़ाने और घौद(बंच) के ग्रेड में सुधार होता है।
PC : डॉ. एसके सिंह प्रोफेसर सह मुख्य वैज्ञानिक(प्लांट पैथोलॉजी) एसोसिएट डायरेक्टर रीसर्च डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर बिहार
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