जैविक खेती

जैविक खेती का प्रमुख आधार ट्राइकोडर्मा क्या है, जाने इसके प्रयोग की विधि और लाभ!

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krishijagriti5

ट्राइकोडर्मा एक भिन्न फफूंद है, जो मिट्टी में पाया जाता है। यह जैविक फफुंदीनाशक है, जो मिट्टी एवं बीजों में पाए जाने वाले हानिकारक फफुंदों का नाश कर पौधे को स्वस्थ एवं निरोग बनाता है। ट्राइकोडर्मा के कई उपभेदों को पौधों के कवक रोगों के खिलाफ जैव नियंत्रण एजेटों के रूप में रोगों को कई तरह से प्रबंधित करता है।

यथा एंटीबायोसिस, परजीविवाद, मेजबान पौधे के प्रतिरोध को प्रेरित करना और प्रतिस्पर्धा शामिल हैं। अधिकांश जैव नियंत्रण एजेंट टी.एस्परेलम, टी.हार्जियनम, टी.विराइड और टी.हैमेटम प्रजातियों के है। बायो कंट्रोल ऐजेंट आम तौर पर जड़ की सतह पर अपने प्राकृतिक आवास में बढ़ता है, और इसलिए विशेष रूप से जड़ रोग को प्रभावित करता है, लेकिन यह पूर्ण रोगों के खिलाफ भी प्रभावी हो सकता है।

हमारे किसान भाइयों द्वारा कई प्रशन पूछे जाते हैं की ट्राइकोडर्मा क्यों इस्तेमाल करें, ट्राइकोडर्मा को कैसे इस्तेमाल करें, ट्राइकोडर्मा को किस लिए इस्तेमाल करे, ट्राइकोडर्मा से क्या नहीं करे, ट्राइकोडर्मा से क्यों न करे इस तरह के तमाम प्रश्न पूछे जाते हैं, जिसका जवाब एक एक करके बताने में बहुत परेशानी होती है हमे जिससे बहुत कम लोगों को ही बता पाते है लेकिन कृषि जागृति के इस पोस्ट में हर एक हमारे किसान भाई जान सकते हैं की ट्राइकोडर्मा से क्या क्या कर सकते हैं।

ट्राइकोडर्मा से क्या क्या करते है

किसी भी बीज को उपचारित कर सकते हैं वो भी दो तरीको से। पहला पानी के साथ दूसरा बिना पानी के। नर्सरी के पौधों के जड़ों को भी उपचारित कर सकते हैं, पानी के साथ। मिट्टी को भी उपचारित कर सकते हैं। ट्राइकोडर्मा से ये सभी उपचार क्यों करना चाहिए।

ट्राइकोडर्मा मृदा जनित रोगों की रोकथाम के लिए सफल और प्रभावकारी तरीका हैं। जिससे मिट्टी जनित एवं बीज जनित रोग खत्म हो जाते है और बीज का अंकुरण बेहतर और उपज अच्छी होती हैं। इससे आर्द्रगलन, उकठा रोग, जड़ सड़न, तना सड़न, कालर राट, फल सड़न जैसी कई बीमारियों को लगने से नियंत्रण होती है।

ट्राइकोडर्मा से क्या क्या न करें और क्यों

ट्राइकोडर्मा के साथ किसी रासायनिक उर्वरक का प्रयोग तथा किसी रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग एक साथ मिलाकर न करे या आगे पीछे भी न करें। क्योंकि मिट्टी में रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल तात्कालिक तथा किसी एक फफूंद विशेष रोग व कीट के लिए होता है। ये रासायनिक कीटनाशकें मिट्टी में डाले गए पहले से विद्यमान ट्राइकोडर्मा और इसके अन्य फायेमंद जैविक कारकों को तुरंत मार देती है।

खेत में उच्चित नमी एवं पर्याप्त कार्बनिक खाद की कमी से ट्राइकोडर्मा का विकास नहीं होता और मर जाता है। ट्राइकोडर्मा तेज धूप में मरने लगता है। इसलिए इसका उपयोग संध्या के समय ही करे। और इसे ठंडे स्थान पर स्टोर करके रखें। बाजार में ये ट्राईकोडर्मा जी-डर्मा प्लस के नाम से मिलता है जो की एक लीटर के बोतल में उपलब्ध है।

PC: प्रोफेसर डॉ एसके सिंह विभागाध्यक्ष, पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी, प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना। डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर, बिहार

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