जलवायु परिवर्तन की समस्या केवल भारत में ही नहीं हैं बल्कि यह एक विश्व स्तरीय समस्या है। कुछ रिपोर्ट के अनुसार 19 सदी की तुलना में धरती का तापमान लगभग 2 से 4 डिग्री सेंटीग्रेड तक बढ़ गया हैं।
इसके साथ ही वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा भी लगभग 50 प्रतिशत तक बढ़ी हैं। जलवायु परिवर्तन के कई कारण हो सकते हैं। जिनमे कुछ प्राकृतिक एवं मानव जनित कारण शामिल हैं। जिसके दुष्प्रभाव मनुष्यों, पशु-पक्षी आदि सभी पर नजर आते हैं।
बात करें कुछ मुख्य कारणों की तो ग्रीन हाउस में कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, आदि हानिकारक गैसों का प्रयोग, कृषि मैं अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का प्रयोग, ज्वालामुखी विस्फोट, कारखानों से निकलने वाले हानिकारक गैसों, इसमें शामिल हैं। तो आइए जानते है कृषि जागृति के इस पोस्ट में जलवायु परिवर्तन के कारण पशुओं पर होने वाले प्रभाव के बारे में विस्तार से।
जलवायु परिवर्तन की मार से पशु-पक्षी भी अछूते नहीं हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान में लगातार वृद्धि हो रही हैं। लगातार बढ़ता तापमान एवं आर्द्रता विभिन्न कीटो के पनपने का मुख्य कारण है।
जिसके परिणामस्वरूप पशुओं में कई तरह के रोगों के होने की संभावना भी बढ़ती जा रही है। कई शंकर नस्ल के पशुओं में प्रोटोजोआ रोग जैसे सर्रा एवं बबेसियोसिस बढ़ाने का भी खतरा होता हैं। बढ़ता तापमान एवं वातावरण में आर्द्रता के कारण पशुओं में थानेला, खुरपका, मुंहपा, आदि कई अन्य रोगों के होने की शिकायत भी बढ़ती जा रही है।
पीपीआर बोवाइन वायरस डायरिया से बछड़े बछिया के अलावा वयस्क पशु भी प्रभावित हो सकते हैं। बढ़ते तापमान का प्रतिकूल असर पशुओं के विकास एवं उनके योवन पर भी देखने को मिलता हैं।
ग्लोबल वार्मिंग के प्रति शंकर नस्ल के पशु देशी नस्ल के पशुओं से अधिक संवेदनशील होते हैं। अत्यधिक गर्मी, शीत लहर, एवं आवश्यकता से अधिक वर्षा होने पर पशुओं के दूध उत्पादन में 5 से 20 प्रतिशत तक कमी दर्ज की गई हैं।
कुछ शोधोंको के अनुसार गर्मी के तनाव के कारण पशुओं के दूध उत्पादन में 10 से 25 प्रतिशत तक कमी आ जाती हैं। तापमान में अचानक परिवर्तन से पशुओं की प्रजनन क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती हैं।
चयापचय दर कम होने लगती हैं। पशु तेज गति से सांस लेने लगते हैं। पशुओं को पसीना भी अधिक आता हैं। बढ़ते तापमान में पानी की आवश्यकता के साथ इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन की व्यवस्था भी बढ़ जाती हैं। पशुओं के त्वचा की सतह पर रक्त का तेज प्रवाह होने लगता हैं। जिससे रक्त वाहिका विस्फर हो जाती हैं।
आहार एवं पानी: पशुओं के आहार में दाने की मात्रा बढ़ाए। उसके आहार से हरे चारे को भी शामिल करे। जिंक, कॉपर, कोबाल्ट, मैंगनीज, सेलेनियम आदि सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए उचित पशु आहार का चयन करें।
रोगों से बचाव: पशुओं को कई तरह जीवाणु, विषाणु, आदि रोगों से बचाने के लिए सही समय पर टीकाकरण कराए। कीटो से बचाने के लिए पशु आवास की खिड़कियों में जाली लगाए। किसी भी रोग के लक्षण नजर आने पर उसे नजरंअंदाज करने की जगह तुरंत पशु चिकित्सक से परामर्श करें।
पशु आवास: बदलते मौसम की मार से पशुओं को बचाने के लिए विभिन्न मौसम में पशु आवास में पंखा, कूलर, हीटर, आदि की व्यवस्था करें।
अपने क्षेत्र के अनुसार पशुओं के नस्ल का चयन करें। गर्मी एवं ठंड के प्रति सहनशील नस्ल के पशुओं का पालन करें। पशुओं के स्थानीय नस्लों में सुधार के लिए विशेष प्रजनन विधि को अपनाए।
यह भी पढ़े: इस तरह मुर्गी पालन के व्यवसाय से होगी लाखों की कमाई, जाने लगत एवं सब्सिडी!