कृषि जागृति

किसानों द्वारा फसलों पर रासायनिक खाद व कीटनाशक डालने से क्या-क्या नुकसान हो रहा है?

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krishijagriti5

बढ़ती लागत: किसानों द्वारा अपने फसलों पर रासायनिक खाद व कीटनाशक डालने से दिन प्रति दिन उनकी खेती पर आने वाली लागत में वृद्धि हो रही है। 1960 में जब यूरिया नया-नया आया था तो जितनी फसल 2 बैग यूरिया डालने से मिल जाती थी, आज उतनी फसल 5 बैग यूरिया डालने से भी नहीं मिलती यानिकि उतनी फसल उगाने के लिए किसान को हर दो साल में यूरिया बढ़ाकर डालना पड़ता है। जिससे उसकी लागत तो बढ़ रही है, लेकिन आय में कतई बढ़ोतरी नहीं हो रही है।

जमीन में घटते पोषक तत्व: किसानों द्वारा फसलों पर रासायनिक खाद व कीटनाशक डालने के अंधाधुंध इस्तेमाल की वजह से जमीन में रहने वाले फसलों के मित्र सुक्ष्म जीवाणु एवं मित्र सूक्ष्मजीवी समाप्त हो गए हैं और यही सूक्ष्म जीवाणु और सुक्ष्मजीवी मिट्टी को पौधे के लिए जरूरी तत्व देते थे।

पौधों में बीमारियों की बढोतरी: चूंकि जमीन से पोषक तत्व समाप्त हो गए हैं। इसलिए जिन फसलों में किसानों द्वारा रासायनिक खाद व कीटनाशक डालने के अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहे हैं, उन फसलों में पोषक तत्वों के नाम पर सिर्फ नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश होता है, बाकी तत्व गायब होते हैं। इसलिए फसल ऊपर से तो दिखने में तो बहुत अच्छी होती है, लेकिन आंतरिक रूप से कमजोर होती है। ऐसी फसलों पर कीड़ों का आक्रमण ज्यादा होता हैं।

बढ़ता रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग: चूंकि पौधे पर बीमारियां ज्यादा लगती हैं, इसलिए रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल भी किसानों द्वारा अंधाधुंध हो रहा है। जिससे फिर से एक बार किसान की लागत बढ़ जाती है, साथ में पर्यावरण का नुकसान भी हो रहा है।

दूषित होता भूमिगत जल: किसानों द्वारा इस्तेमाल की गई रासायनिक खाद व कीटनाशकों का सिर्फ 20 प्रतिशत हिस्सा फसल द्वारा ग्रहण होता है, बाकी 80 प्रतिशत हिस्सा पानी के साथ घुलकर जमीन के नीचे चला जाता है जोकि नीचे जाकर भूमिगत जल को भी दूषित कर देता है और इसी जहरीले पानी को कुएं या नलके द्वारा बाहर खींचकर हम लोग पीने में इस्तेमाल करते हैं, यानिकि एक धीमा जहर हम इस पानी के साथ पी रहे हैं।

ठोस होती जमीन व बढ़ती पानी की लागत: जमीन में रहने वाले सुक्ष्म जीवाणु और सुक्ष्म जीवी अपने विचरण, स्राव व क्रियाओं द्वारा जमीन को पोला रखते हैं, वह उसमें जल एवं हवा का संचारण करते हैं। लेकिन रासायनिक खादों व कीटनाशकों के इस्तेमाल से जमीन के अंदर रहने वाले सुक्ष्म जीवाणु व सुक्ष्म जीवी समाप्त हो चुके हैं।

जिसकी वजह से मिट्टी में इनकी क्रियाएं व विचरण बंद हो गया है और मिट्टी ठोस हो गई है। मिट्टी के ठोस होने से मिट्टी जल का अवशोषण कम व देर से करती है और काफी पानी जमीन के अंदर न जाकर धूप में (उड़) वाष्पित हो जाता है, इसलिए रासायनिक खादों व कीटनाशकों के इस्तेमाल से खेती में देने वाले पानी की खपत भी बढ़ रही है, यानिकि सिंचाई की लागत भी बढ़ रही है।

बढ़ता बंजरपन: हमारे किसान भाइयों, देश की एक करोड़ 11 लाख हेक्टेयर जमीन भारत सरकार सिंचित खेती में लाई थी, उसमें से 12 लाख हेक्टेयर जमीन बंजर हो चुकी है और लगभग उतनी ही बेअसर हो चुकी है। जमीन का लगातार पी.एच (PH) मान बढ़ाता जा रहा है। इसका कारण है किसानों द्वारा रासायनिक खादों व कीटनाशकों के इस्तेमाल से ठोस होती जमीन।

ठोस जमीन खेतों में नहरों द्वारा आए पानी को देर से सोखती है। जिससे वो पानी खेतों में खड़ा रहता है और धूप में वाष्पित होकर उड़ जाता है, लेकिन पानी में मौजूद नमक व लवण मिट्टी की सतह पर रह जाते हैं। जिससे मिट्टी की लवणता बढ़नी शुरू हो जाती है, यानिकि मिट्टी का PH मान बढ़ाना शुरू हो जाता है और मिट्टी धीरे-धीरे बंजर होने शुरू हो जाती है।

बीमार होते लोग: किसानों द्वारा रासायनिक खादों व कीटनाशकों से किसान को तो बहुत सारे नुकसान हो रहे हैं। साथ ही, किसानों द्वारा उगाई गई फसल को खाने वाले लोग भी आज तरह-तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। एक धीमा जहर अन्ना व सब्जियों के द्वारा हमारे शरीर में पहुंच रहा है, जिससे नित नई-नई बीमारियां पैदा हो रही है।

अंधेरे में किसान का भविष्य: अब अगला सवाल यह है कि क्या इतने नुकसान और जोखिम उठाने के बाद भी किसान का भविष्य सुरक्षित है? तो इसका उत्तर हमारे किसान भाइयों नहीं में है। आप सब जानते है कि आज पूरा विश्व एक खुला बाजार बन चुका है। विश्व व्यापार में कुछ ऐसे नियम बनाए गए है कि कोई भी देश अपना सामान दूसरे देश में भेज सकता है, यानिकि जल्दी ही भारत में विदेशी कंपनियां भी अपनी कृषि की फसल के उपज बेचने के लिए उतर सकती है। विकसित देशों की सरकारें चूंकि एक अमीर सरकार है, इसलिए उनके किसानों को वो भारी सब्सिडी देते हैं। जिनसे उन किसानों की फसल उगाने की लागत बहुत कम आती है।

ऊपर से पूरे विश्व में आज रासायनिक खादों व कीटनाशकों के खिलाफ एक जंग छिड़ चुकी है। हमारे किसान भाइयों, आज से कुछ समय बाद हमारे देश में एक ही दुकान पर दो तरह के गेहूं बिक रहे होंगे, जिनमें से एक पर लिखा होगा- जहररहित विदेशी गेहूं और दूसरे पर लिखा होगा जहरसहित देशी गेहूं और दोनों का दाम भी एक ही होगा। तो क्या लगता है? लोग कौन सा गेहूं खरीदेंगे? इसलिए आपको आज और अभी जागना होगा नींद से और अपने मिट्टी को जैविक बनना होगा।

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