मक्के की फसल मुख्य रूप से एक खरीफ सीजन की फसल है, लेकिन बाजार में इसकी बढ़ती मांग और सभी मौसम के अनुकूल उपलब्ध किस्मों से अब तीनो ही सीजन में किसान इसकी खेती करने लगे हैं। मौसम, जलवायु और किस्म के अनुसार पौधो में पोषक तत्वों का प्रबंधन भिन्न-भिन्न होता हैं। इसके अलावा मिट्टी की जांच में प्राप्त आंकड़ों के आधार पर इसके फसल में पोषक तत्व प्रबंधन किया जाना आवश्यक है।
मक्के की बुआई से लगभग 10 से 15 दिन पहले खेत तैयार करने के लिए 5 टन 12 माह पुरानी सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति एकड़ खेत में बिखेर कर एक बार गहरी जुताई करें।
खेत की गहरी जुताई करने के एक सप्ताह बाद मिट्टी उपचार के लिए 150 किलोग्राम 12 माह पुरानी सड़ी हुई गोबर की खाद में 25 किलोग्राम डीएपी, 35 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश और 10 किलोग्राम जी-सी पावर या जी-प्रोम एडवांस को किसी छायादार स्थान पर मिलाकर 30 मिनट हवा लगने के बाद संध्या के प्रति एकड़ खेत में बिखेर कर दो से तीन बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी व समतल बना लें।
मक्के की फसल से अधिक उत्पादन लेने के लिए जिंक सल्फेट एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। जिसकी पूर्ति के लिए प्रति एकड़ खेत में 4 से 8 किलोग्राम जी-वैम का प्रयोग कर सकते हैं। इसे आप मिट्टी उपचार करते समय भी मिला सकते हैं।
मिट्टी जांच कराने पर सल्फर की कमी आने पर 10 किलोग्राम सल्फर प्रति एकड़ खेत में बुआई के समय पर प्रयोग कर सकते हैं। वही मिट्टी में बोरॉन की कमी आने पर 500 ग्राम बोरॉन की मात्रा का प्रयोग प्रति एकड़ खेत के लिए काफी होता हैं। खेत में बोरॉन की पूर्ति बुआई से पहले मिट्टी उपचार के समय करनी चाहिए।
खेत में मक्के की बुआई के पश्चात पोषक तत्वों की कमी के लक्षण पौधों पर दिखने लगते हैं। मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी से मक्के की पतियां कम हरी हो जाती हैं और निचली पत्तियां झड़ने लगती हैं। मक्के के पौधों में नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए 25 किलोग्राम यूरिया में 10 किलोग्राम जी-सी पावर मिलाकर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें। ध्यान रहे खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी बना रहें।
मक्के की खड़ी फसल में बोरॉन की कमी होने पर फसल के डंठल में डरारे बनाने लगती है। और नई कालिया सूखने लगती हैं। मक्के के पौधों में बोरॉन की कमी को पूरा करने के लिए 150 लीटर पानी में एक लीटर जी-एनपीके को मिलाकर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करें।
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