मक्के की फसल में कई तरह के कीटो व रोग के प्रकोप के कारण मक्के की पैदावार में भरी कमी आ सकती है। इसलिए मक्के की अच्छी पैदावार के प्राप्त करने के लिए इसकी फसल को निम्न कीटो व रोगों के लगने से मुक्त रखना जरूरी है।
तना भेदक सुंडी: यह सुंडी कीट मक्के की पौधों के तने में छेद करके उसे अंदर से खाते हैं।जिससे पौधे सुख जाते हैं और पैदावार में भारी कमी होती हैं। मक्के की फसल को इस किट से बचाने के लिए किट के प्रकोप के शुरुआती चरण में ही जैविक उपचार करें। इसके लिए 150 एक लीटर जी-एनपीके को मिलाकर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करें। बेहतर परिणाम के लिए 10 दिन के बाद पुनः स्प्रे करे।
तना मक्खी: इस प्रकार की मक्खीया मक्के के छोटे पौधों को खा कर उन्हे अंदर से खोखला कर देती है। इस किट के लगने के प्रारंभिक अवस्था में या उससे पहले ही 150 लीटर पानी में एक लीटर जी-एनपीके को मिलाकर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करें।
सफेद लट: इस कीट के प्रकोप से फसलों को काफी भारी नुकसान होता हैं। यह मिट्टी में रहते हैं और मक्के के जड़ों को खाते हैं। इस किट से फसल को बचाने के लिए खेत में कभी भी कच्चे गोबर का छिड़काव ना करें जिसमे कीड़े मौकोडे लगे हो। मक्के की बुआई करने से पहले बीज और मिट्टी को उपचारित कर के बुआई करें।
पति लपेटक सुंडी: यह किट मक्के की पतियों को लपेट कर उसका हरा पदार्थ बनाती हैं जिससे पत्तियां सफेद हो कर झड़ने लगती है। इसे किट से फसल को बचाने के लिए प्रारंभिक अवस्था में 150 लीटर पानी में एक लीटर जी- एनपीके को मिलाकर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करें।
कटुआ कीड़ा: इस प्रकार के किट दिन में मिट्टी में रहते हैं और रात के समय मक्के के नए पौधों को मिट्टी के पास से काट कर फसल को हानि पहुंचाते है। इस किट से फसल को बचाने के लिए प्रारंभिक अवस्था में ही 150 लीटर पानी में एक लीटर जी-एनपीके को मिलाकर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करें।
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