अगर आप मक्के की जैविक खेती की करने की सोच रहे हैं तो जान ले मक्के की फसल में लगने वाले रोगों के बारे मैं। मक्के की फसल में इन रोगों के लगने पर फसल को बहुत क्षति पहुंच सकती है। कृषि जागृति के इस पोस्ट आप जानेंगे जैविक दवाओं के छिड़काव से आप मक्के में लगाने वाले विभिन्न रोगों से छुटकारा कैसे पा सकते हैं, तो आइए जानते हैं।
पत्ती झुलसा रोग: इस रोग के लगने पर मक्के की पत्तियों में भूरे रंग के लंबे धब्बे बन जाते हैं। और नीचे की पत्तियों से शुरू होकर यह रोग ऊपर की पत्तियों में फैलता हैं। इस रोग से मक्के की फसल को बचने के लिए शुरुआती चरण में ही 150 लीटर पानी में एक लीटर जी-एनपीके को मिलाकर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।बेहतर परिणाम के लिए 10 दिन के बाद पुनः स्प्रे करें।
डाउनी मिल्डयू: इस रोग से ग्रस्त मक्के के पौधों की पतियों पर धारिया बन जाती हैं और मक्के की पत्तियां सफेद रुई की तरह नजर आने लगती हैं। जिससे मक्के के पौधों का विकाश भी रुक जाता हैं। इस रोग से मक्के की फसल को बचाने के लिए प्रारंभिक अवस्था में ही 150 लीटर पानी में एक लीटर जी-एनपीके को मिलाकर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करें।
तना सड़न: इस रोग से प्रभावित मक्के के पौधों के तने सड़ने लगते हैं। और पत्तियां पीली हो कर सुख जाती है। इस रोग से मक्के की फसल को बचने के लिए 150 लीटर पानी में एक लीटर जी-एनपीके को मिलाकर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करें। बेहतर परिणाम के लिए 10 दिन के बाद पुनः स्प्रे करें।
रतुआ रोग: इस रोग ग्रस्त मक्के की पत्तियों पर लाल और भूरे रंग के फफोले हो जाते हैं। इस रोग से मक्के की फसल को बचाने के लिए प्रारंभिक अवस्था में ही 150 लीटर पानी में एक लीटर जी-एनपीके को मिलाकर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करें।
मृदुरोमिल आसिता रोग: मक्के की फसल में इस रोग के लगने पर पत्तियों पर हल्के हरे या पीले रंग की धारिया बनती है। और रोग बढ़ने पर यह धारिया लाल रंग की हो जाती है। मक्के के पौधो पर इस रोग के लक्षण दिखने पर तुरंत जैविक उपचार करें । इसके लिए आपको 150 लीटर पानी में एक लीटर जी-एनपीके को मिलाकर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करें।
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