कृषि समाचार

मिर्च की जैविक खेती में पॉलीहाउस, शेड नेट, मलचिंग का किया उपयोग तो आई बहार

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krishijagriti5

सीमलवाड़ा पंचायत समिति क्षेत्र के किसान परंपरागत खेती छोड़ मिर्च की जैविक खेती कर जीवन संवार रहे हैं। इसकी खेती से किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार आ रहा हैं। माना का देव ग्राम पंचायत के किसान धूल सिंह इस खेती से लाखों रुपए कमा रहे हैं एवं अन्य लोगों के लिए भी नजीर बने हुए हैं। धूल सिंह ने बताया, गुजरात से पौधे लाने के बाद इनको एक बीघा खेत में पहले से खेड़ाई जुताई कर पॉलीहाउस, शेड नेट हाउस एवं प्लास्टिक मलचिंग से तैयार खेत में लगाते हैं।

एक माह बाद मिर्च के पौधों में फूल लगने शुरू हो जाते हैं। इसके बाद मिर्च लगना शुरू हो जाती हैं। एक माह में पकी मिर्च की तुडाई शुरू होती है। पक्की मिर्च के बीज थ्रेसर से निकाले जाते हैं। बीजों को सुखाने के बाद गुजरात में बिक्री की जाती है। एक किलो बीज की कीमत चार से पांच हजार रुपए मिलती है। इस प्रकार पांच से सात फीट के मिर्च के पौधों से छः माह में लाखों की कमाई होती है।

इसके पौधे की ऊंचाई दो से तीन फीट के बीज होती है। नए वैज्ञानिक तरीके से पांच से सात फीट के पौधे तैयार किए हैं। प्रति बीघा 50 से 60 हजार रुपए तक खर्च आता है। इस वर्ष अब तक चार बार मिर्च की तुडाई की है एवं लगभग तीन लाख रुपए तक का बीच बेच चुके है। छः माह में कम से कम छह बार तुडाई करते हैं। एक बार में 15 से 20 किलो बीज निकलते हैं। एक किलो बीज का भाव चार से पांच हजार रुपए मिल जाता है। पिछले एक साल से एक बीघा में मिर्च की फसल से अच्छा मुनाफा हो रहा है।

किसान ने बताया, यह पहले पारंपरिक गेहूं, चना, मक्का की खेती करतें थे। इसमें मुनाफा नहीं होने से गुजरात मजदूरी भी करने जाते थे। जब उन्हें पता चला, मिर्च की जैविक खेती में अधिक कमाई है तो गुजरात जाना बंद करके मिर्च की जैविक खेती शुरू की। इसमें अच्छी कमाई होने लगी है। विभाग से किसानों को तकनीकी ज्ञान, पौधों में रोगों का निदान संबंधी जानकारी सहित कृषि यंत्रों पर सरकार की तरफ से सब्सिडी भी मिली रही हैं।

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