डाउनी मिल्डयू या कोमल फफूंदी एक प्रकार का कवक आधारित रोग है। जिसे मृदुरोमिल आसिता के नाम से जाना जाता है। उच्च नमी और मध्यम तापमान की स्थिति के दौरान यह रोग मक्के की फसल में तेजी से फैलता है। इसके अलावा कवक के बीजणु, हवा, पानी या दूषित औजारों और उपकरणों से भी तेजी से फसल में प्रसारित होते हैं।
कोमल फफूंदी रोग अन्य फसलों के साथ-साथ मक्के के पौधों को भी प्रभावित करते हैं। कोमल फफूंदी रोग पत्तियों, तने और कभी-कभी प्रभावित पौधों के फूलों पर धुंधले, भूरे, सफेद या बैंगनी रंग के धब्बों के रूप में दिखाई देते है। ये धब्बे आमतौर पर मक्के की पत्तियों के नीचे की तरफ विकषित होते हैं। जैसे जैसे रोग बढ़ता है, धब्बे पीले या भूरे होकर प्रभावित पौधों की मृत्यु का कारण बन जाते हैं। इसके अलावा प्रभावित पत्तियों के नीचे की ओर मुड़ने, पौधे की वृद्धि कम होने जैसे लक्षण भी फसल में कोमल फफूंदी रोग के संक्रमण की पहचान बताते हैं।
मक्के की में कोमल फफूंदी रोग के प्रबंधन के लिए पारंपरिक, रासायनिक और कई विधियां प्रयोग में लाई जाती हैं। तो आईए जानते हैं कृषि जागृति के इस पोस्ट में मक्के की फसल में लगे इस रोग को नियंत्रण करने के लिए किए जाने वाले कुछ कारकों के बारे में।
प्रतिरोधी किस्मों का चयन करे: मक्के के पौधे की ऐसी किस्मों का उपयोग करना चाहिए, जो प्रतिरोधी है या डाउनी फफूंदी रोग के प्रति कम संवेदनशील है। इस रोग के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता हैं।
फसल चक्र अपनाएं: एक ही खेत में प्रति वर्ष मौसमों के लिए अतिसंवेदनशील फसलें लगाने से बचे। जैसे की आप हर बार मक्के की एक वैरायटी या बार बार मक्के की फसल न लगाएं।
उचित दूरी और छंटाई: पर्याप्त वायु प्रवाह प्रदान करना और पौधों के चारो ओर नमी कम करना कवक के विकाश और प्रसार को रोकने में मदद कर सकता हैं। इसके अलावा संक्रमित पौधो के हिस्सो की छंटाई भी इस रोग को हटाने और नियंत्रण करने में मदद करता हैं।
सिंचाई प्रबंधन: मक्के के पौधों को दिन में जल्दी पानी देना, ड्रिप सिंचाई का प्रयोग करना और पत्तियों पर सीधा पानी देने से बचाना पत्ती के गीलेपन को कम करने में मदद कर सकता हैं। जिससे पौधों में फफूंद जनित रोग का निर्माण नही हो पाता है।
मक्के की बुआई करने से पहले खेत की मिट्टी और बीज को उपचारित कर लें। मिट्टी उपचार के लिए 150 किलोग्राम 12 माह पुरानी सड़ी हुई गोबर की खाद में 10 किलोग्राम जी सी पावर और एक लीटर जी एनपीके को किसी छायादार स्थान पर मिलाकर 30 मिनट हवा लगने के बाद प्रति एक खेत छिड़काव करें।
बीज उपचार करने के लिए सबसे पहले रोग रहित किस्म का चयन करे और 10 मिली जी-एनपीके को प्रति किलोग्राम बीज में मिलाकर कर 15 से 20 मिनट हवा लगने के बाद मुख्य खेत में बुआई करें। इसके अलावा मक्के की खड़ी फसल में लगे इस रोग के शुरुआती चरण में ही 150 लीटर पानी में एक लीटर जी डर्मा प्लस को मिलाकर कर ठंडे वातावरण में स्प्रे करें।
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