धान और गेहूं के बाद भारत में मक्का तीसरी नंबर पर सबसे अधिक उगाई जाने वाली फसल हैं। इसकी खेती तरह-तरह की जलवायु में होने के कारण भारत के लगभग सभी राज्यों में मक्के की खेती की जा सकती हैं। हालाकि फसल में कई तरह के रोग व किट लगने के कारण किसानों को मक्के की फसल का सही दाम नहीं मिल पाता है।
मक्के की बेहतर कीमत पाने के लिए चमकदार दानों के साथ उनमें उचित नमी की मांग होती है। इसके अलावा भी फसल में कई माप दंड ऐसे है होते है जिसके अंतर्गत किसान अपनी गुणवत्तापूर्ण मक्के की फसल की पहचान कर सकते हैं। तो आइए जानते हैं कैसे कृषि जागृति के इस पोस्ट में विस्तार से!
मक्के के फसल की गुणवत्ता के मुख्य मानक
मक्के की तुड़ाई के समय पर 25 प्रतिशत और भंडारण के लिए 13 प्रतिशत नमी का होना अनिवार्य है। मक्के के खेत में स्थित डंडल के टुकड़े, धूल, कंकड़, मिट्टी, पत्तियां जैसे आदि तत्व भी बाजार में मक्के की कीमत में कमी का कारण बनते हैं।
मक्के की फसल में आवश्यकता से अधिक नमी अनाज में फफूंद जनित रोगों का कारण बन सकती हैं। मक्के के दानों से इस प्रकार के सभी अनावश्यक तत्वों को अलग करने के लिए 4 मिलीमीटर वाली छलनी का प्रयोग किया जा सकता हैं।
खराब मक्के के दाने का भंडारण में होना भी एक बड़ी समस्या हो सकती हैं। इसके अंतर्गत टूटे हुए या किड़ो द्वारा क्षतिग्रस्त बीज मुख्य रूप से शामिल हैं। इस तरह के बीज स्वस्थ बीजों को खराब कर सकते हैं।
इसके अलावा अलग-अलग किस्मों के बीजो का मिश्रण भी बाजार में मक्के की कीमत को कम करता हैं। इसलिए मक्के की तुड़ाई के समय विभिन्न किस्म के भुट्टे को अलग-अलग करें।
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