कुछ आम के व्यापारी ज्यादा मुनाफे एवं जल्दी बेचने के चक्कर में कच्चे आम को पकाने के लिए औद्योगिक ग्रेड कैल्शियम कार्बाइड का प्रयोग करते हैं जो की बहुत सस्ता होने के साथ-साथ बाजार में आसानी से उपलब्ध हो जाता हैं। औद्योगिक ग्रेड कैल्शियम कार्बाइड में आमतौर पर आर्सेनिक, सीसा एवं फॉस्फोरस के अवशेष शामिल होते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा होता है।
कच्चे आम पकाने के उद्देश्य के लिए कैल्शियम कार्बाइड का उपयोग भारत सहित अधिकांश देशों में अवैध है। कभी भी किसी भी परिस्थिति में आम या किसी भी फल को पकाने के लिए इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। इस पोस्ट में आप फल पकाने की कई वैज्ञानिक एवं सुरक्षित विधि उपलब्ध है जो उनका उपयोग करना चाहिए। प्रथम आवश्यकता इस बात की है की सही परिपक्वता पर ही फल की तुड़ाई करनी चाहिए।
सही परिपक्वता पर फल की तुड़ाई नही करने से फल की गुणवक्त्ता बुरी तरह से प्रभावित हो सकती है। तुड़ाई के बाद यह जानना अति आवश्यक है की इसे सुरक्षित तरीके से कैसे पकाना है, यह भी जानना अति अत्यावश्यक है। आम के पकाने की कई विधियां प्रचलित है।
एक साधारण तकनीक के अनुसार एक एयर टाइट कंटेनर के अंदर कुछ पके हुए फलों को पकने वाले फलों के साथ रखने से आम के फल के पकने की प्रक्रिया तेज हो जाती है क्योंकि पके हुए फल एथिलीन गैस को छोड़ते हैं। इसलिए कच्चे फलों के पकने की प्रक्रिया तेज हो जाती है।
एक और अन्य तरीका यह है कि फलों को एयर टाइट कक्ष के अंदर पकने के लिए रखा जाए और कक्ष में धुआं किया जाये। धुआं एसिटिलीन गैस का उत्सर्जन करता है। कई फल के व्यापारी इस तकनीक का उपयोग करते हैं। खासतौर पर केले और आम जैसे खाद्य फलों को पकाने के लिए। लेकिन इस पद्धति का मुख्य दोष यह है कि फल एक समान रंग और स्वाद प्राप्त नहीं करते हैं।
इसके अलावा उत्पाद पर धुएं की गंध फल की गुणवत्ता को बाधित करती है। एक सप्ताह के लिए धान की भूसी या गेहूं के भूसे के ऊपर फल फैला कर भूसे से ही ढकने से भी फल पक जाते हैं। ईथरल नामक रसायन 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर परिपक्व फलों को डुबोते हैं। इसके बाद सूखे सूती कपड़े से खूब अच्छी तरह से पोंछ कर बिना एक दूसरे के संपर्क में आए हुए अखबार पर फैलाते हैं।
और एक पतली सूती कपड़ा से इसे ढक दिया जाता है। इस विधि में, फल दो दिनों के भीतर पक जाएंगे। लेकिन खाद्य सुरक्षा और मानक नियमों के अनुसार ईथरल का फलों से स्पर्श वर्जित है। एक सरल और हानिरहित तकनीक में, 10 मिली लीटर ईथरल और 2 ग्राम सोडियम हाइड्रॉक्साइड को एक चौड़े मुंह वाले बर्तन में पांच लीटर पानी में मिलाया जाता है।
इस बर्तन को फलों और कमरे के पास पकने वाले कक्ष (वायु रोधी) के अंदर रखा जाता है। कमरे का लगभग एक तिहाई हिस्सा हवा के संचलन के लिए शेष क्षेत्र को छोड़कर फलों से भरा होता है। फलों को 12 से 24 घंटों के लिए इस कक्ष में रखा जाता है। रसायन की लागत को कम करने के लिए, इथाइलीन उत्सर्जन करने वाले फल जैसे पपीता एवं केला जैसे फल भी उसी कमरे में रखने से फल जल्दी पक जाते हैं।
आम पकाने के कक्ष में एथिलीन गैस को आम पकाने के उपयोग सुरक्षित और दुनिया भर में स्वीकृत विधि है। एथिलीन गैस के कैन से स्प्रे से भी 24 से 48 घंटों में फल पकने को बढ़ावा देता है। एथिलीन एक प्राकृतिक हार्मोन होने के कारण फलों के उपभोक्ताओं के लिए कोई स्वास्थ्य खतरा नहीं होता है।
यह एक डी-ग्रीनिंग एजेंट है, जो छिलके को हरे रंग से परिपूर्ण पीले (केले के मामले में) में बदल सकता है और फलों की मिठास एवं सुगंध को बनाए रख सकता है, इस प्रकार फल में मूल्यवर्धन संभव है क्योंकि यह अधिक आकर्षक लगता है तथा पूर्णतया सुरक्षित है ।
श्रेय: प्रोफेसर डॉ एसके सिंह विभागाध्यक्ष, पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी, डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर, बिहार
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