सब्जी मटर की फसल जिसे हरी मटर या गार्डन मटर के रूप में भी जाना जाता है, जो विभिन्न बीमारियों के प्रति संवेदनशील हैं, जो सर्दियों के मौसम के दौरान उनकी वृद्धि और उपज को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं। मटर की रोगमुक्त फसल के लिए इन रोगों का समय रहते प्रबंधन करना बहुत महत्वपूर्ण है।
सब्जी वाले मटर की खेती भारत में शीतकालीन फसल का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो घरेलू खपत और निर्यात दोनों में महत्वपूर्ण योगदान देती है। हालांकि, मटर की फसल विभिन्न बीमारियों से बाधित हो सकती है। इन बीमारियों के प्रभाव को कम करने और स्वस्थ मटर की फसल सुनिश्चित करने के लिए जैविक प्रबंधन आवश्यक हैं।
सब्जी वाले मटर की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग
पावडरी मिल्डीव फफूंदी रोग: यह रोग मटर के पत्तियों पर सफेद पाउडर जैसे धब्बे एवं रुका हुआ विकास इस रोग के लक्षण है। इसके प्रबंधन के लिए प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें, हवा के संचार के लिए उचित दूरी रखें और स्प्रे के लिए जैविक फफूंदनाशकों का प्रयोग करें।
डाउनी मिल्ड्यू (पेरोनोस्पोरा विसिया): इस रोग में मटर की पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीलापन, निचली सतह पर बैंगनी रंग का मलिनकिरण दिखाई देता है। इस रोग के प्रबंधन के लिए इस रोग के प्रति प्रतिरोधी किस्में लगाएँ, उचित सिंचाई पद्धतियाँ अपनाएँ और यदि आवश्यक हो तो जैविक फफूंदनाशकों का प्रयोग करें।
एस्कोकाइटा ब्लाइट (एस्कोकाइटा पिसी): इस रोग की वजह से मटर की पत्तियों पर गाढ़ा छल्ले के साथ काले घाव, जिससे पत्तियां गिर जाती हैं। इस रोग के प्रबंधन के लिए फसल चक्र, बीज उपचार, और जैविक फफूंदनाशकों का स्प्रे पत्तियों पर करना चाहिए।
फ्यूसेरियम विल्ट (फ्यूसेरियम ऑक्सीस्पोरम): इस रोग से मटर की पत्तियों का मुरझाना, निचली पत्तियों का पीला पड़ना और संवहनी मलिनकिरण। इस रोग के प्रबंधन के लिए प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें, फसल चक्र का अभ्यास करें, और मृदा सौरीकरण तकनीकों को नियोजित करें।
जड़ सड़न (राइज़ोक्टोनिया सोलानी): इस रोग के प्रमुख लक्षण है जड़ों पर भूरे घाव, पौधों का मुरझाना इत्यादि। इसके प्रबंधन के लिए जल निकासी में सुधार करें, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी का उपयोग करें और यदि आवश्यक हो तो जैविक फफूंदनाशकों का प्रयोग करें।
एफिड संक्रमण (विभिन्न प्रजातियाँ): एफिड संक्रमण की वजह से पत्तियां मुड़ना, रुका हुआ विकास, शहद जैसा स्राव होता है। इसके प्रबंधन के लिए प्राकृतिक शिकारियों को बढ़ावा दें, परावर्तक गीली घास का उपयोग करें और कीटनाशक साबुन का प्रयोग करें।
मटर एनेशन मोज़ेक वायरस (पीईएमवी): इस रोग के प्रमुख लक्षण है मटर की पत्तियों पर मोज़ेक पैटर्न और रुका हुआ विकास। इस रोग के प्रबंधन हेतु वायरस-मुक्त बीजों का उपयोग करें, एफिड वैक्टर को नियंत्रित करें और संक्रमित पौधों को तुरंत हटा दें।
अगर आप चाहते है इन रोगों से मटर की फसल को बचाना तो आप मटर की जैविक बुवाई करें। इसके लिए सबसे पहले आप खेत की दो बार जुताई कर कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दे। फिर 100 से 150 किलोग्राम 12 माह पुरानी सड़ी हुई भुरभुरी व थोड़ी नमी वाली गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट के साथ 10 किलोग्राम जी-सी पावर एवं 10 किलोग्राम जी-प्रोम एडवांस में 500 मिली जी-बायो फॉस्फेट एडवांस या 500 मिली जी-डर्मा प्लस को किसी छायादार स्थान पर मिलाकर 30 मिनट हवा लगने के बाद संध्या के समय प्रति एकड़ खेत में छिड़काव कर 1 दिन के लिए खुला छोड़ दें।
इसके बाद बाजार से मटर की उच्च गुणवत्ता के बीज प्राप्त कर बीज को उपचारित करें। बीज उपचारित करने के लिए 10 मिली जी-बायो फॉस्फेट एडवांस या 10 मिली जी-डर्मा प्लस को एक किलोग्राम बीज में मिलाकर कर 15 से 20 मिनट हवा लगने के बाद खेत की दो बार जुताई कर बुवाई करें। बीज बुवाई करने से पहले अगर आप चाहे तो बीज का परीक्षण भी कर सकते हैं।
इसके लिए आपको मटर के 11 या 21 बीज लेने है और इस बीज को 0.1 मिली जी-बायो फॉस्फेट एडवांस या 0.1 मिली जी-डर्मा प्लस से उपचारित कर किसी उचित स्थान पर बुवाई कर दे। फिर आप इसे निगरानी करते रहे इससे आपको दो बाते मालूम होगी पहला की बीज कितने दिन में अंकुरित हो रहा है और दूसरा बोई गई बीज में से कितनी बीज अंकुरित हो रही है।
इसके अलावा एक और अगल तरह से बीज का परीक्षण कर सकते है और इसे तत्काल परीक्षण भी बोलते है। इसके लिए आपको 11 या 21 बीज मटर के लेने है और 100 मिली पानी में 1 मिली जी-बायो फॉस्फेट एडवांस या 1 मिली जी-डर्मा प्लस को मिलाकर कर बीज को डाल दें। ये कार्य संध्या के समय करे ताकि आप इसे सुबह देखकर आप जान सकते है की बीज अंकुरित हुआ है या नहीं अगर बीज अंकुरित हुआ है तो डाली गई बीज में से कितनी बीज अंकुरित हुई है।
अगर संध्या में डाली गई बीज सुबह में अंकुरित नहीं होती है तो बीज को पानी से निकाल कर किसी सब्जी वाली लता से एक ताजा पत्ती को तोड़ कर उसमें बीज को रख कर हल्की पत्ती को मोड़कर धागे से हल्के बांध कर उचित स्थान पर रखें। फिर इसे संध्या के समय खोल कर देख कर जान सकते है बीज कितने अंकुरित हुए हैं। ये तत्काल बीज परीक्षण है जो 24 घंटे के अंदर आप जान सकते है बीज की अंकुरण प्रतिशत।
ध्यान रहे प्रति एकड़ मटर की जैविक बुवाई के लिए बीज की मात्रा अगर आप प्रति काढ़ा में 2 किलोग्राम बीज देंगे तो 60 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज देनी चाहिए और अगर आप प्रति काढ़ा डेढ़ किलोग्राम बीज देंगे तो 45 से 50 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज देनी चाहिए।
PC: प्रोफेसर डॉ एसके सिंह विभागाध्यक्ष, पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी, प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना। डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर, बिहार
यह भी पढ़े: जंगली खेती के फायदे जानिए किसान भाइयों ये कितना फायदेमंद है मानव जीवन के लिए
जागरूक रहिए व नुकसान से बचिए और अन्य लोगों के जागरूकता के लिए साझा करें एवं कृषि जागृति, स्वास्थ्य सामग्री, सरकारी योजनाएं, कृषि तकनीक, व्यवसायिक एवं जैविक खेती संबंधित जानकारियां प्राप्त करने के लिए कृषि जागृति चलो गांव की ओर के WhatsApp Group से जुड़े रहे या कृषि संबंधित किसी भी समस्या के जैविक समाधान के लिए हमे WhatsApp करें। धन्यवाद