जूं एवं किलनी छोटे परजीवी कीट होते हैं। यह पशुओं के शरीर पर रहते हैं और उनका खून सूचकर अपना भरण पोषण करते हैं। यह परजीवी कीट कई रोगों के वाहक भी होते हैं। इनके प्रकोप से गाय, भैंस एवं बकरियां भी अछूती नहीं हैं। कुछ पशुपालक जूं, किलनी को खत्म करने के लिए रासायनिक दवाओं का प्रयोग करते हैं।
जिसका पशुओं पर भी प्रतिकूल असर होता है। यदि आप भी पशु पालन करते हैं तो अपने पशुओं को जूं और किलनी से बचाने के तरीके कृषि जागृति के इस पोस्ट से जान सकते हैं। इसके साथ ही इस पोस्ट में इनके प्रकोप के लक्षण की जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि इनकी संख्या बढ़ने पर ये प्रत्यक्ष रूप में भी देख जा सकते हैं।
दुधारू पशुओं में जूं और किलनी के प्रकोप के लक्षण
खरोंच और रगड़: संक्रमित पशुओं को अक्सर जूं और किलनी के काटने के कारण खुजली की समस्या होती है। खुजली को दूर करने के प्रयास में पशु दीवार या आस पास की वस्तुओं से खुद को खरोंचने और रगड़ने लगते हैं।
बालों का झड़ना: जूं और किलनी से प्रभावित पशुओं में बालों के झड़ने का कारण बन सकते हैं। विशेष रूप से गर्दन और पुंछ के बाल अधिक गिरते हैं।
त्वचा की जलन: संक्रमित पशुओं में जूं और किलनी के काटने के कारण त्वचा में जलन, लालिमा और सूजन की समस्या हो सकती है।
दूध उत्पादन में कमी: गंभीर संक्रमण से दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन में भी कमी आ जाती हैं।
एनीमिया: कुछ मामलों में किलनी का संक्रमण दुधारू पशुओं में एनीमिया का कारण बन जाते हैं।
पशुओं में कमजोरी: जूं और किलनी के खून चूसने की वजह से पशु कमजोर हो जाते हैं। कई बार पशुओं में सुस्ती की समस्या भी हो सकती है। इसके साथ ही पशु सामान्य से कम आहार का सेवन करते हैं।
पशुओं में बेचैनी: संक्रमित पशु जूं और किलनी के काटने से होने वाली असुविधार के कारण बेचैन और उत्तेजित होती है।
पशुओं की मृत्यु: इस समस्या के कारण कई बार बछड़े या बछिया की मृत्यु तक हो जाती हैं।
देशी तरीके से कैसे करें जूं और किलनी पर नियंत्रण
5 लीटर पानी में ढाई किलोग्राम निम की पत्तियां और 2 किलोग्राम निर्गुंडी की पत्तियां डाल कर अच्छी तरह उबालें। उबले हुए मिश्रण को 12 घंटे तक ठंडा होने के लिए रख दें। 12 घंटों के बाद पत्तियों को छान कर अलग कर लें। अब 9 लीटर पानी में एक लीटर उबला हुआ मिश्रण को मिलकर पशुओं के शरीर के प्रभावित हिस्सों पर रगड़े। 3 से 4 दिनों तक सुबह ओर शाम इसका इस्तेमाल करने से पशुओं को काफी राहत मिलती है। और जूं और किलनी की समस्या में कमी आती है।
जूं और किलनी से प्रभावित पशुओं को निजात दिलाने के कुछ अन्य तरीके
कंघी करना: जानवरों को एक दांतेदार कंघी के साथ कंघी करने से उनके बालों से जूं और टिक्स को हटाने में मदद मिल सकती है। इस विधि में श्रम की आवश्यकता ज्यादा होती है। लेकिन यह संक्रमण को कम करने के में काफी प्रभावी होती है।
साबुन का घोल: आमतौर पर साफ सफाई की कमी होने के कारण दुधारू पशुओं में जूं और किलनी की समस्या ज्यादा होती है। इस समस्या से बचने के लिए पशुओं को नियमित रूप से नहलाएं। जूं और किलनी की समस्या होने पर पशुओं को सफ्ताह में 2 बार साबुन के घोल से नहलाएं।
आयोडीन का प्रयोग: जूं और चिचड़ से राहत दिलाने के लिए 7 दिनों के अंतराल पर पशुओं के शरीर पर 2 बार आयोडीन लगाएं।
लहसुन का प्रयोग: लहसुन के अंदर कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो जूं और किलनी जैसे परजीवियों से राहत दिलाने में कारगर साबित होती है। पशुओं को जूं और किलनी से निजात दिलाने के लिए सप्ताह में 2 बार पशुओं के शरीर पर लहसुन का पाउडर लगाएं।
खाद्य तेल का उपयोग: गाय या भैंस को जूं और किलनी जैसे परजीवी कीटों की समस्या से बचाने के लिए अलसी के तेल का इस्तेमाल करें। पशुओं के शरीर पर अलसी के तेल से मालिश करें। अलसी के तेल की जगह अन्य खाद्य तेल का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
पशु चिकित्सक से परामर्श: पशुओं में परेशानी बढ़ने पर पशु चिकित्सक की सलाह लें। चिकित्सक की सलाह के बाद पाईरीथ्रम नामक वानस्पतिक कीटनाशक का भी प्रयोग कर सकते हैं। लेकिन शुरुआत में नहीं।
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