पशु पालन

रिजका की जैविक खेती से नहीं होगी कभी पशुओं के लिए हरे चारे की कमी!

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krishijagriti5

हमारे देश में हरे चारे में ज्वार और बरसीम के बाद रिजका की खेती प्रमुखता से की जाती हैं। भारत में रिजका की खेती लगभग एक मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती हैं। यह एक पोष्टिक चारा वाली फसल है।

इसके सेवन से पशुओं की पाचन क्षमता बेहतर होने के साथ दूध उत्पादन की क्षमता भी बढ़ती है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि एक बार फसल की बुआई करके किसान कई वर्षों तक हरा चारा प्राप्त कर सकते हैं। आज कृषि जागृति के इस पोस्ट में हम रिजका की जैविक खेती से होने वाले लाभ एवं इसकी खेती से जुड़ी अन्य बारियों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

रिजका की जैविक खेती से पशुओं को होने वाले लाभ

रिजका एक दलहनी फसल है। इसकी जैविक खेती से खेत की मिट्टी में काफी सुधार होता हैं और मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ती हैं। रिजका के पौधों की जड़े गहरी होती है। जिससे पानी की कमी वाले क्षेत्रों में भी इसकी खेती बड़ी आसानी से की जा सकती हैं।

हरे चारे वाली अन्य फसलों की तुलना में रिजका की जैविक फसल में सिंचाई की आवश्यकता कम होती हैं। बारिश के मौसम को छोड़ कर वर्ष भर इसकी कटाई की जा सकती हैं। एक बार फसल की बुआई करके 3 से 5 वर्षों तक इसकी कटाई की जा सकती हैं।

इसके सेवन से पशुओं की दूध उत्पादन क्षमता बढ़ती हैं। रिजका में 18 से 25 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन और 25 से 35 प्रतिशत क्रूड फाइबर की मात्रा पाई जाती हैं। गाय भैंस के अलावा मुर्गी पालन एवं सूअर पालन में भी रिजका को हरे आहार के तौर पर शामिल किया जाता हैं।

कई पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण इसका सेवन पशुओं के स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होता हैं। मीठा और स्वादिष्ट होने के कारण पशु इसे बड़े चाव से खाते हैं।

इसका उपयोग हरे चारे और सूखे चारे दोनों रूप में किया जाता हैं। ये फसल ठंड, गर्मी एवं वर्षा सभी मौसम के प्रति सहनशील है। दलहनी फसल होने के कारण रिजका की फसल में नाइट्रोजन की आवश्यकता कम होती हैं।

रिजका की जैविक खेती कैसे करें!

खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी एवं बुआई का सही समय: इसकी जैविक खेती के लिए गहरी एवं दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त है। क्षारीय मिट्टी एवं जल जमाव वाले क्षेत्रों में इसकी खेती न करें। इसके अलावा अम्लीय मिट्टी में भी इसकी उपज अच्छी नहीं होती हैं। इसकी बुआई के लिए अक्टूबर से नवंबर का महीना सबसे उपयुक्त है।

बीज की मात्रा एवं बीज उपचार: प्रति एकड़ खेत में 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती हैं। यदि किसी खेत में पहली बार रिजका की बुआई कर रहे हैं तो बीज उपचारित करना अति आवश्यक है।

इसके अच्छे विकाश के लिए एक विशेष प्रकार के जीवाणु की आवश्यकता होती है। इन जीवाणुओं का टीका आप स्थानीय किसान सेवा केंद्र या चौधरी चरण सिंग कृषि विश्वविद्यालय के माइक्रोबायोलॉजी विभाग से प्राप्त कर सकते हैं।

इसके बाद 500 मिलीलीटर पानी में 100 ग्राम गुड मिला कर घोल तैयार करें। इस घोल में टीके का 1 पैकेट मिलाए और 5 किलोग्राम बीज के ऊपर इस मिश्रण को लेप की तरह लगा कर बीज उपचारित करें। उपचारित बीज को छांव में सुखाए।

खेत की जैविक तैयारी: खेत तैयार करते समय सबसे पहले 2 से 3 बार हल या कल्टीवेटर के द्वारा गहरी जुताई करें। इसके बाद रोटावेटर के द्वारा खेत को समतल बनाए। खेत की तैयारी के समय प्रति एकड़ खेत में 100 किलोग्राम 12 माह पुरानी सड़ी हुई गोबर की खाद या वार्मिंग कम्पोस्ट में 10 किलोग्राम जी-सी पावर, एक लीटर जी बायो फॉस्फेट एडवांस को मिलकर 30 मिनट तक छायादार स्थान पर हवा लगने के बाद प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।

बुआई की सही विधि: रिजका के बीज कठोर होते हैं। इसलिए बुआई से पहले 12 घंटों तक बीज को पानी में भिगो कर रखें। इसके बाद किसी छायादार हल्का सुखा कर बुआई करें। इसकी बुआई से 12 इंच की दूरी पर कतारों में करें। इससे फसल की कटाई करने में आसानी होगी।

उर्वरक प्रबंधन: हर महीने प्रति एकड़ खेत में 100 किलोग्राम 12 माह पुरानी सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद के साथ 10 किलोग्राम जी-सी पावर या जी-प्रोम एडवांस को मिलकर छिड़काव करते रहे।

सिंचाई प्रबंधन: बीज की बुआई के एक महीने बाद पहली सिंचाई करें। इसके बाद गर्मी के मौसम में 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहे। ठंड के मौसम में 20 से 25 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। वसंत के मौसम में 15 से 20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जाती हैं। वही वर्षा के मौसम में वर्षा होने पर इसकी फसल की सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती हैं।

रोग एवं कीट प्रबंधन: अन्य फसलों की तरह रिजका की फसल में भी कई तरह के रोग एवं कीटो का प्रकोप होता हैं। जिनमे मृदुरोमिल आसिता रोग, डाउनी मिल्ज्यू, रतुआ रोग, लिफ स्पॉट रोग, रिजका विविल ओर मोयला कीट प्रमुख हैं। यह रोग तभी लगते है जब फसल में पोषक तत्वों की कमी आती हैं।

फसल की कटाई एवं पैदावार: बुआई के 50 से 60 दिनों बाद फसल की पहली कटाई की जा सकती हैं। इसके बाद 30 दिनों के अंतराल पर फसल की कटाई कर सकते हैं। एक बार इसकी बुआई करके प्रति एकड़ खेत से हर वर्ष 250 से 300 क्विंटल हरा चारा प्राप्त किया जा सकता हैं। वही प्रति एकड़ खेत से हर वर्ष लगभग 55 से 60 क्विंटल तक सुखा चारा प्राप्त किया जा सकता हैं। बीज की बात करें तो प्रति एकड़ खेत से 180 से 250 किलोग्राम तक बीज प्राप्त किए जा सकते हैं।

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