मैजिक राईस जिसको बनना हैं मैगी से भी आसान। ठंडे पानी में भी पकने वाला इस चावल में 10.73 प्रतिशत फाइबर 6.8 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है। बिहार जैसे बाढ़ ग्रस्त राज्य के लिए ये चावल वरदान साबित होगा। बिज उपलब्ध है। फोन :- 9470012945 पिछले कुछ सालो से बिहार के किसानों के द्वारा मैजिक चावल की खेती की जा रही है।
इस चावल की विशेषता ये है कि यह ठंडे पानी में पक जाता हैं। सुबे की राजधानी पटना से सटे सिमरा गांव के उज्जवल भी ऐसे ही एक किसान हैं जिन्होंने मैजिक राईस की खेती करी है। उज्जवल बताते हैं की इसके छः फिट लंबे तने से लटकी लंबी-लंबी बालियां सबका मन मोह लेती है। उन्हें इस खेती की जानकारी सामाजिक संस्था आवाज एक पहल से मिली थी।
तत्पश्चात उन्होंने इसका बिचड़ा डाला। जुलाई महीने में इसकी रोपाई करी जाती है और अक्टूबर के आखिर हफ्ते तक इसकी फसल पक कर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। संस्था के द्वारा उन्हें निर्देशित किया गया था कि खेती में किसी भी तरह का उर्वरक का उपयोग नहीं करना है। खेती में पानी और उर्वरक का उपयोग ना होने के कारण इसकी लागत काफी कम आई थी।
आवाज एक पहल के लवकुश जी कहते हैं की इस चावल की खेती मुख्य रूप से असम में की जाती है। इसे बोका चावल, ओरीजा सातिवा या असमिया मुलायम चावल के नाम से जाना जाता है। संस्था के सदस्य वीरू बताते हैं कि आसाम के नलबारी, बारपेटा, गोलपाड़ा, बक्सा, कामरूप, धुबरी, और कोकराझर ऐसे जिले हैं जहाँ इसकी खेती बहुतायत से होती है।
वही संस्था के एक और सदस्य सुमित के अनुसार बोका चाउल (चावल) का इतिहास 17 वी शताब्दी से जुड़ा है। बिना ईंधन के ही आप इस चावल को पका सकते हैं बस आप को सामान्य तापमान पर इसको थोड़ी सी पानी में भिगोना होगा। चना मुंग या बादाम अंकुरित होने के बाद जैसा होता है ये चावल भी वैसा ही हो जायेगा।
बोका चाउल (चावल) को जी.आई.टैग के साथ पंजीकृत किया गया है। असम राज्य का अब इस चावल पर अब जीआई टैग मिलने क़ानूनी अधिकार हो गया है। बोका चाउल (चावल) को असम के लोग गुड़, दूध, दही, चीनी या अन्य बस्तुओं के साथ खाते हैं। इस चावल का उपयोग स्थानीय पकवानो में भी किया जाता है।
लवकुश के अनुसार बिहार के बाढ़ प्रभावित इलाकों के लिए यह चावल वरदान साबित हो सकता है। बिहार में हर साल बाढ़ आती हैं और उसमें फंसे लोग सिर्फ रूखे सूखे अनाज खाकर अपना पेट भरते हैं। ऐसे में अगर उनके पास मैजिक चावल की उपलब्धता होगी तो उनका भरपूर पोषण हो सकेगा।
यह खाने में बहुत स्वादिस्ट एवं अत्यधिक पौष्टिक भी होता है। बोका चाउल (चावल) में 10.73 प्रतिशत फाइबर सामग्री एवं 6.8 प्रतिशत प्रोटीन है, गौहाटी विश्वविद्यालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के एक अध्ययन में इसका खुलासा हुआ है। श्रेय: लवकुश, आवाज एक पहल
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