भारत के कई क्षेत्रों में गर्मी के मौसम में हरे चारे की कमी काफी होने लगती है। ऐसे में पशुओं को संतुलित आहार उपलब्ध कराना पशुपालकों के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी हो जाती हैं। कुछ बातों को ध्यान में रखकर हम इस समस्या से बच सकते हैं। जिससे हरे चारे वाली फसलों की खेती और इसकी देखभाल शामिल है। तो आइए जानते हैं कृषि जागृति के इस पोस्ट में विस्तार से।
चारे वाले फसलों की खेती से मिलने वाले लाभ
मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार: चारे वाली फसलें कार्बनिक पदार्थों को बढ़ाकर मिट्टी की संरचना में सुधार करता है। इसके साथ ही चारे वाली फसलों की खेती मिट्टी के कटाव को कम करके मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद कर सकती हैं।
अतिरिक्त आय का स्रोत: किसान चारे वाली फसलों की बिक्री कर सकते हैं, जो उन्हें आय का एक अतिरिक्त स्रोत प्रदान करता है।
कम खर्च में उत्पादन: चारे वाली फसलों की खेती कम लागत में की जा सकती है। जल्दी तैयार होने के कारण इनकी खेती से मुनाफा भी अधिक होता हैं।
पशुओं के लिए हरा चारा क्यों है जरूरी!
पौष्टिक आहार: हरा चारा में प्रोटीन, ऊर्जा, विटामिन और खनिज जैसे पोषक तत्वों का एक समृद्ध स्रोत है, जो पशुओं के विकास के लिए बहुत जरूरी हैं।
सुपाच्य: हरा चारा पशुओं के लिए खाने में स्वादिष्ट होने के साथ आसानी से पचने वाला होता है, जो पोषक तत्वों के बेहतर अवशोषण में मदद करता है और उनके स्वास्थ्य में सुधार करता है।
हाइड्रेशन: हरे चारे में पानी की मात्रा अधिक होती है, जो पशुओं को हाइड्रेटेड रखने में मदद करता है।
लागत प्रभावी: हरे चारे को अन्य फसलों की तुलना में बहुत कम खर्च में उगाया जा सकता है। इस तरह किसानों के लिए यह लागत प्रभावी होता है।
बेहतर स्वास्थ्य: हरे चारे में प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट और अन्य पोषक तत्व होते हैं जो रोगों को रोकने और पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार करने में मदद करता है। इसके सेवन से पशुओं का स्वास्थ्य बेहतर होता है।
दूध उत्पादन: हरे चारे के सेवन से पशुओं में दूध उत्पादन की क्षमता बढ़ती है।
गर्मी के मौसम में हरे चारे के तौर पर किन फसलों की खेती करें!
गर्मी के मौसम में हरे चारे के तौर पर नीचे दी गई सभी फसलों की खेती कर सकते हैं।
मक्का: मक्का गर्मियों की एक काफी लोकप्रिय फसल है। जिसे हरे चारे के लिए उगाया सकता है। यह ऊर्जा और प्रोटीन से भरपूर होता है और जानवरों द्वारा अधिक सुपाच्य होता है।
ज्वार: ज्वार भी गर्मियों की एक और लोकप्रिय फसल है। जिसे हरे चारे के लिए उगाया जा सकता है। यह सुख प्रतिरोधी है और गर्म और शुष्क परिस्थितियों में भी अच्छी तरह से विकसित हो जाता है।
लोबिया: लोबिया एक फलीदार फसल है जिसे गर्मी के मौसम में हरे चारे के लिए उगाया जा सकता है। यह प्रोटीन में समृद्धि है और इसे अन्य हरे चारे की फसलों के पूरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
बाजरा: बाजरा एक काफी कठोर फसल है। जिसे गर्म और शुष्क परिस्थितियों में भी उगाया जा सकता है। यह ऊर्जा में समृद्ध है और जानवरों के लिए हरे चारे के स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
नेपियर घास: नेपियर घास एक बारहमासी घास है। जिसे गर्मी के मौसम में हरे चारे के लिए उगाया जाता है। यह अत्यधिक उत्पादन और पूरे साल हरे चारे की निरंतर आपूर्ति प्रदान कर सकता है।
मई माह में चारे वाली फसलों की देखभाल
लोबिया: लोबिया की फसल में बुआई के 40 से 50 दिनों बाद पौधों में फलियां आने लगती हैं। फरवरी-मार्च में इसकी खेती करने वाले किसान इस समय फलियों की तुड़ाई कर सकते हैं। फलियों की तुड़ाई करने के बाद पौधों की कटाई करके इसे हरे चारे के तौर पर इस्तेमाल करे। इसके अलावा खेत में बची हुई फसल की जुताई करके मिट्टी में मिलाएं। इससे मिट्टी की उर्वरा क्षमता में काफी वृद्धि होती है।
रिजका: इसकी बुवाई अक्टूबर-नवंबर महीने में की जाती है। हरे चारे के लिए यदि आपको रिजका की खेती की है तो आप जून महीने तक चारा प्राप्त कर सकते हैं। मई महीने में फसल की कटाई के बाद सिंचाई करें। इससे पौधों का विकास जल्दी होता है और 20 से 25 दिनों के बाद यानी जून महीने में फसल फिर कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
मक्का: गर्मी के मौसम में हरे चारे की पूर्ति के लिए मक्का की खेती करना काफी लाभदायक सिद्ध होता है। मई महीने से जून के दूसरे सप्ताह तक इसकी बुआई कर लेनी चाहिए।
नेपियर घास: नेपियर घास को एक बार लगाने के बाद चार से पांच सालों तक हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए किसानों के बीच इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ती जा रही है। यह दुधारू पशुओं के लिए एक पौष्टिक आहार है। इसकी खेती अन्य फसलों के साथ भी बड़ी आसानी से की जा सकती है। बुआई के लगभग 50 दिनों बाद फसल पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद 25 से 30 दिनों के अंतराल पर कटाई करते रहे।
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