मक्के के खेत मे अधिक खाली जगह और धीमी प्रारंभिक वृद्धि के कारण फसल में खरपतवार निकलने का एक गंभीर समस्या है। मक्के की फसल में प्रमुख खरपतवार की प्रजातियां गुली डंडा घास या गेंहू का माना, कैनरी घास, जंगली जई, बथुआ, जंगली सेजी, स्वाइन घास इत्यादि है। ये खरपतवार मक्के की फसल में पोषक तत्वों एवं पानी को तेजी से अवशोषण करते हैं।
और फसल में 35 प्रतिशत तक की उपज को हानि का कारण बनते हैं। मक्के की फसल में प्रारंभिक अवस्था में 4 से 5 सप्ताह की अवधि के दौरान खरपतवार को नियंत्रण किए जाना अति आवश्यक होता हैं। खरपतवार नियंत्रण न केवल अधिक उपज प्राप्त करने के लिए जरूरी है। बल्कि फसल से अधिक गुणवत्ता पूर्ण फल प्राप्ति में भी खरपतवार नियंत्रण एक अहम भूमिका निभाता है। मक्के के खेत में खरपतवार नियंत्रण के लिए यांत्रिक रूप से कुदाल व खुरपी द्वारा किया जाता हैं।
इसके अलावा मलचिंग द्वारा भी फसल में खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता हैं। मक्का की फसल में मलचिंग विधि में विभिन्न वानस्पतिक पौधों जैसे लेंटाना, ल्यूकेना या कुडजू की टहनियों का प्रयोग किया जाता हैं। यह प्रक्रिया न केवल खरपतवार नियंत्रण में मदद करती हैं बल्कि मिट्टी के संरक्षण और मिट्टी में अधिक समय तक नमी बनाने के लिए भी कारगर है। मक्का में खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवार नाशक का प्रयोग काफी प्रभावी और व्यापक होता है।
मक्के की खेत में निकलने वाले खरपतवारों को आप खरपतवार नाशक दवाओं से भी नियंत्रण कर सकते हैं। इसके लिए आप फसल की बुआई से 1 दिन बाद एट्राजिन 50 प्रतिशत डबल्यूपी 400 से 800 ग्राम की मात्रा का छिड़काव 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव कर सकते हैं।
इसके अलावा फसल की बुआई से 40 दिन बाद टेंबोट्रियोन 34.4 प्रतिशत एससी की 114 ग्राम मात्रा को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव कर सकते हैं।
शून्य जुताई वाले क्षेत्रों में बीजारोपण के 10 से 15 दिन पहले पैराक्वेट 24 प्रतिशत एसएल की 220 से 800 ग्राम मात्रा का छिड़काव 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे कर सकते हैं। ध्यान रहे ये खरपतवार नाशक दवाओं का इस्तेमाल उचित में करे नहीं ये मक्के की फसल पर भूरा प्रभाव भी डाल सकते हैं। क्योंकि ये काफी जहरीले होते हैं।
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