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मक्के के पौधों की झुलसती पत्तियां दे रही हैं इस रोग का संकेत!

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krishijagriti5

पत्ती झुलसा रोग जो कई फसलों में लगने वाले यह रोग अपने नाम से ही रोग के लक्षणों की व्याख्या करता हुआ आया है। मक्के के फसल में इस रोग का कारण सामान्यतः खेत में पिछली फसल के बचे हुए संक्रमित अवशोष होते हैं। ये अवशेष कई बीजाणुओं का घर होते हैं, जो बारिश या सिंचाई के पानी के साथ बहकर पूरे खेत में फैल जाते हैं। यदि तापमान 24 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच हो एवं वायुमंडल में आर्द्रता अधिक हो तो संक्रमण के कई चक्र विकशित हो सकते है, जो मक्के की फसल को बहुत तेजी से संक्रमित करते हैं।

मक्के के पौधों में इस रोग के लक्षण सबसे पहले निचली पत्तियों पर दिखाई देते हैं। और हवा द्वारा वितरित बिजाणुओ के कारण बाद में ऊपरी पत्तियों में भी फैल जाते हैं। संक्रमण के शुरुआती धब्बे छोटे, लंबे, पानी भरे फोड़ों से हो सकते हैं। जो बाद में भूरे हरे से हल्के भूरे घावों के लंबे बैंड में विकशित हो जाते हैं। इसी तरह के धब्बे मक्के की भूसी पर भी देखे जा सकते हैं। आम तौर पर संक्रमण जितनी देर से शुरू होता हैं, उपज का नुकसान उतना ही कम होता हैं।

पुष्पक्रम निकलने से पहले मक्के पर संक्रमण के धब्बे बहुत कम देखे जाते है। कवक के लिए इष्टतम स्थितियों के साथ फुल आने से पहले या उसके दौरान संक्रमण होने से 60 प्रतिशत तक उपज का नुकसान हो सकता है। वही यदि संक्रमण फूल आने के 5 से 6 सप्ताह बाद होता हैं तो उपज में मामूली कमी आती है। हालाकि , संक्रमित पौधों के अवशेष अगले वर्षो के लिए संक्रमण का मूल बन जाता है और अगली फसल को शुरुआती अवस्था से ही संक्रमित कर सकते हैं।

मक्के की फसल लगे इस रोग को नियंत्रण करने के जैविक उपाएं

फसल की कटाई करने के बाद 5 टन 12 माह पुरानी सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति एकड़ खेत में बिखेर कर गहरी जुताई करे।

मक्के की फसल को पत्ती झुलसा रोग से बचने के लिए 150 लीटर पानी में एक लीटर जी एनपीके को मिलाकर प्रति एकड़ खेत में ठंडे वातावरण में स्प्रे करें।

संक्रमण के लक्षण दिखने पर सिंचाई की सुविधा में खेत के मुताबिक बदलाव लाए, जिससे रोग का संक्रमण पूरे खेत में न फैले और तुरंत जैविक उपचार करें।

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