पपीते के पत्तियों को मोड़ने वाला विषाणु रोग के लक्षण ये है कि इस रोग का सबसे स्पष्ट लक्षण पत्तियों के नीचे या भीतर की ओर मुड़ना है। इसके अन्य रोग के लक्षणों में कभी-कभी बाहरी बढ़वार के साथ पत्तियों की शिराओं के मोटा होना शामिल हैं। इसकी चमड़े जैसे तथा खुरदुरी हो जाती है तथा डंठलों में प्रायः मुड़ाव आ जाता हैं। ऊपरी पत्तियां सर्वाधिक प्रभावित होती हैं। रोग लगने के बाद की अवस्था में पत्तियां झड़ जाती हैं, तथा पौधे का विकास अवरूद्ध हो जाता है एवं फूलों और फलों के उत्पादन पर असर गहरा पड़ता हैं। यदि फल लगे भी हैं, तो वे छोटे और आकृति में विकृत होते हैं, तथा फल असमय गिर जाते हैं।
हमारा सुझाव है कि किसी के प्रारंभिक चरणों में या फसल कटाई के समय करीब होने पर, जैविक नियंत्रण का उपयोग किया जाए तो बेहतर होगा। इस रोग के अधिक उन्नत चरणों में कृपया रसायनिक नियंत्रण का उपयोग करें न की जैविक नियंत्रण करें। याद रहे एक ही समय में विभिन्न उत्पादों को मिलाने या लगाने की सलाह नहीं दी जाती हैं।
इस विषाणु के प्रसार का मुख्य रोगवाहक, सफेद मक्खी बेमिसिया टाबाकी है। यह विषाणु को एक पौधे से दूसरे पौधे तक गैर-निरंतर तरीके से फैलता हैं। इसका अर्थ यह हैं कि जब विषाणु रोगवाहक में सक्रिय होता हैं, तब कुछ ही सेकंड में इसका प्रसार होता हैं। रोग के प्रसार के अन्य तरीकों में संक्रमित अंकुर या बीजों के साथ-साथ कलम लगाने के पदार्थ भी शामिल हैं। पपीते की पत्तियों में मुड़ाव पैदा करने वाले विषाणु खेतों में मशीनी कार्य करते समय नहीं फैलते हैं। वैकल्पिक धारक टमाटर और तम्बाकू के पौधे हैं। विषाणु बड़े पैमाने पर फैला हुआ हैं, किंतु अब इसका प्रकोप कम हो गया हैं। हालांकि, कुछ विशेष मामलों में, इसके कारण अत्यधिक आर्थिक हानि होती हैं।
माहू द्वारा विषाणु को ग्रहण करने और प्रसार करने से रोकने के लिए सफेद तेल पायस 1% का छिड़काव करें।
हानेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए। जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो का उपयोग किया जाए। विषाणुजनक संक्रमण का कोई रासायनिक उपचार नहीं हैं। लेकिन, सफेद मक्खियों की जनसंख्या को नियंत्रण करने से संक्रमण की तीव्रता कम की जा सकती है। बुवाई के समय मिट्टी में डाईमेथोटेट या मेटासीस्टोक्स के 10 दिनों के अंतराल पर प्रभावी रूप से नियंत्रण किया जा सकता हैं।
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