गंभीर मामलों में या निवारक उपाय के रूप में, कॉलर रोट नियंत्रण के लिए पंजीकृत कवकनाशी लागू करें। अपने क्षेत्र के लिए सबसे उपयुक्त और प्रभावी कवकनाशी द्वारा पपीता तना गलन को निर्धारित करने के लिए स्थानीय कृषि अधिकारियों या विशेषज्ञों से परामर्श करें। हमेशा अनुशंसित आवेदन दरों और सुरक्षा सावधानियों का पालन करें।
इस रोग के प्रबंधन के लिए निम्नलिखित उपाय करना चाहिए यथा पपीता के पौधों के प्रभावित क्षेत्रों में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड कवकनाशी का लेप कर देना चाहिए। कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की 3 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर पौधे के आस पास की मिट्टी को खूब अच्छी प्रकार से भीगा देना चाहिए। इसके 10 दिन के बाद एक इस तरह का कवकनाशी ले,
जिसमे मेटालक्जिल एवं मंकोजेब मिला हो इसकी 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी के घोल से पौधे के आस पास की मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भीगा दे। एक पौधे के आस पास की मिट्टी को भीगाने के लिए 5 लीटर घोल की आवश्यकता पड़ेगी। कैप्टान, मैकोजेब, कैप्टाफॉल आदि में से किसी भी एक कवकनशी का प्रयोग करके मृदा से रोगकरक को कम किया जा सकता है।
याद रखें कि कॉलर रोट के प्रबंधन के लिए रोकथाम अक्सर सबसे प्रभावी रणनीति होती है। अच्छी कृषि क्रियाओं का प्रयोग करके और एक स्वस्थ बढ़ते वातावरण को बनाए रखकर, आप बीमारी के फैलने के जोखिम को कम कर सकते हैं और अपने पपीते के पौधों को इस विनाशकारी रोगज़नक़ से बचा सकते हैं।
यदि रोग पहले से ही मौजूद है, तो स्वस्थ पौधों में इसके प्रसार को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई करना आवश्यक है। ऐसे मामलों में, अपने विशिष्ट स्थान और स्थिति के आधार पर अनुरूप अनुशंसाओं के लिए स्थानीय कृषि विस्तार सेवाओं या पादप रोग विशेषज्ञों से सलाह लेने पर विचार करें।
PC : डॉ. एसके सिंह प्रोफेसर सह मुख्य वैज्ञानिक(प्लांट पैथोलॉजी) एसोसिएट डायरेक्टर रीसर्च डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर बिहार
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