खरीफ सीजन में कम पानी पसंद करने वाली फसलें, जिन्हें सूखा प्रतिरोधी फसलें भी कहा जाता है, टिकाऊ कृषि के लिए आवश्यक हैं, खासकर सीमित जल संसाधनों वाले क्षेत्रों में। ये फसलें आमतौर पर खरीफ सीजन के दौरान उगाई जाती हैं, जो आम तौर पर जून में शुरू होती है और सितंबर में समाप्त होती है।
खरीफ सीजन की फसलें मानसूनी बारिश में फलती-फूलती हैं और पानी की कमी का सामना करने के लिए खुद को तैयार कर लेती हैं। तो आइए जानते है खरीफ सीजन के दौरान खेती की जाने वाली विभिन्न कम पानी वाली फसलें और पानी की कमी वाले क्षेत्रों में उनके महत्व के बारे में। खरीफ सीजन उत्तर भारत में मानसून की शुरुआत का प्रतीक है, जिससे शुष्क क्षेत्रों में बहुत जरूरी राहत मिलती है।
हालांकि अप्रत्याशित वर्षा पैटर्न और लगातार सूखे ने किसानों को लचीली फसल किस्मों की तलाश करने के लिए प्रेरित किया है। कम पानी पसंद करने वाली फसलें इस चुनौती का जवाब हैं, जो कृषि उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा में वृद्धि की क्षमता रखती हैं। कम पानी पसंद करने वाली फसलों का महत्व जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की कमी बढ़ रही है।
कम पानी पसंद वाली फसलों की खेती टिकाऊ कृषि भविष्य के लिए आवश्यक है। इन फसलों को कम सिंचाई की आवश्यकता होती है, जो इन्हें अनियमित जल आपूर्ति या सिंचाई सुविधाओं तक सीमित पहुंच वाले क्षेत्रों के लिए आदर्श बनाती है। इसके अलावा, वे मिट्टी के स्वास्थ्य को बढ़ाते हैं, पानी की बर्बादी को कम करते हैं और सूखे के दौरान फसल की विफलता के जोखिम को कम करते हैं।
कम पानी पसंद करने वाली फसलें यथा बाजरा, फिंगर बाजरा यानी रागी, और फॉक्सटेल बाजरा यानी कंगनी पारंपरिक खरीफ फसलें हैं जो कम पानी की स्थिति में उत्कृष्ट होती हैं। ये पोषक तत्वों से भरपूर हैं और शुष्क वातावरण के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित हैं। ज्वार एक सूखा-सहिष्णु अनाज की फसल है जिसका उपयोग अक्सर पशु चारे और मानव उपभोग के लिए किया जाता है।
यह कम पानी की आपूर्ति पर जीवित रह सकता है, जिससे यह पानी की कमी के दौरान एक आवश्यक फसल बन जाती है। मक्का यानी मकई एक बहुमुखी फसल है जो विभिन्न कृषि-जलवायु परिस्थितियों में उग सकती है। कुछ किस्मों को कम पानी की उपलब्धता के लिए अनुकूलित किया जाता है, जिससे वे एक व्यवहार्य खरीफ विकल्प बन जाते हैं।
दालें जैसे मूंग यानी हरा चना और उड़द यानी काला चना जो फलियां वाली फसलें हैं जो मिट्टी में नाइट्रोजन संवर्धन में योगदान करती हैं। उन्हें न्यूनतम जल इनपुट की आवश्यकता होती है और फसल चक्रण प्रथाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। तिलहनी फसलें जैसे मूंगफली और तिल गहरी जड़ प्रणाली वाली तिलहन फसलें हैं जो मिट्टी से कुशलतापूर्वक पानी खींचती हैं,
जिससे वे शुष्क भूमि कृषि के लिए उपयुक्त हो जाते हैं। PC : डॉ. एसके सिंह प्रोफेसर सह मुख्य वैज्ञानिक(प्लांट पैथोलॉजी) एसोसिएट डायरेक्टर रीसर्च डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर बिहार
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