जो किसान हजारे किसान भाई लीची के नए बाग लगाना चाहते है ,उन्हें सलाह दी जाती है की बाग लगाने से पूर्व कुछ आवश्यक बातो को अवश्य ध्यान में रखें। इसमें सबसे प्रमुख है भूमि, जलवायु और प्रजातियों का चयन। लीची के नए बाग लगाते समय यह जानना आवश्यक है की जहा बाग लगाना है वहा की भूमि और जलवायु लीची की खेती के लिए उपयुक्त है की नही।
लीची की खेती के लिए सामान्य पी.एच.मान वाली गहरी बलुई दोमट मिट्टी अत्यंत उपयुक्त होती है। उत्तर बिहार की मिट्टी जिसकी जल धारण क्षमता अधिक होती है। लीची के नए बाग के लिए उत्तम मानी गई है। अधिक जलधारण क्षमता और ह्रूमस युक्त मिट्टी में इसके पौधों में अच्छी बढ़वार एवं फलोत्पादन के लिए बहुत अच्छा होता है।
मार्च और अप्रैल में गर्मी कम पड़ने से लीची के फलों का विकास अच्छा होता है, साथ ही अप्रैल-मई में वातावरण में सामान्य आर्द्रता रहने से फलों में गूदे का विकास और गुणवत्ता में सुधार होता है। फल के विकास के समय यदि तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से कम रहे एवं वतावरण में पर्याप्त आर्द्रता रहने से फलों में फटने की समस्या कम हो जाती है।
फल पकते समय वर्षा होने से फलों का रंग एवं गुणवत्ता प्रभावित होती है। विगत कई वर्षो से देखा जा रहा है की अप्रैल मई के महीने में अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुच जाने की वजह से फलों की गुणवक्ता ख़राब हो जा रही है तथा फलों का आकार प्रकार भी छोटा हो जा रहा है । इससे बचने के लिए आवश्यक है की बागों में ओवर हेड स्प्रिंकलर लगाकर गुणवक्ता युक्त फल प्राप्त किये जा सकते है।
परिपक्वता के आधार पर लीची की किस्मों का विबरण निम्नलिखित हो सकते है। 1.अगेती- 15 से 30 मई शाही, त्रिकोलिया, अझौली, ग्रीन, देशी।, 2.मध्यम -01 से 20 जून रोज सेंटेड, डी-रोज, अर्ली बेदाना, स्वर्ण रूपा।, 3.पछेती -10 से 15 जून चाइना, पूर्वी, कसबा।
लीची के अच्छे पौधे मुश्किल से मिलते है । इसके लिए आवश्यक है सरकारी या किसी विश्वसनीय नर्सरी से ही पौधे खरीदे। यदि संभव हो तो अगेती, माध्यम एवं पछेती सभी ग्रुप के किस्मों का चयन करें, जिससे अधिक दिन तक लीची खाने को मिल सकें। अधिकांश नर्सरी में शाही और चाइना किस्मों के ही पौधे मिलते है। आइए जानते है ,इनके प्रमुख गुणों के बारे में..
यह देश की सर्वाधिक लोकप्रिय व्यावसायिक एवं अगेती किस्म है। इस किस्म के फल गोल और गहरे लाल रंग वाले होते है जो 20 से 30 मई तक पक जाते है। फल में सुगंधयुक्त गूदे की मात्रा अधिक होती है जो इस किस्म की प्रमुख विशेषता है। फल विकास के समय उचित जल प्रबंध से पैदावार में वृद्धि होती है। इस किस्म के 15 से 20 वर्ष के पौधे से 80 से 100 कि.ग्रा. उपज प्रति वर्ष प्राप्त किया जा सकता है।
यह एक देर से पकने वाली लीची की किस्म है , जिसके पौधे शाही की तुलना में अपेक्षाकृत बौने होते है। इस किस्म के फल बड़े, शक्वाकार होते है। इस प्रजाति में फल के फटने की समस्या कम होती है। फलों का रंग गहरा लाल तथा गूदे की मात्रा अधिक होने के कारण इसकी अत्यधिक मांग है। परन्तु इस किस्म में एकान्तर फलन की समस्या देखी गई है।
एक पूर्ण विकसित पेड़ से लगभग 70 से 80 कि.ग्रा. उपज प्राप्त होती है। दोनों प्रजातियों के लीची के पौधों को औसतन 10×10 मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए। अप्रैल-मई माह में 90x 90x 90 सें.मी. आकार के गड्ढे खोद कर ऊपर की आधी मिट्टी को एक तरफ तथा नीचे की आधी मिट्टी को दूसरे तरफ रख देते हैं।
वर्षा प्रारम्भ होते ही जून के महीने में 20 से 25 किग्रा गोबर की 12 माह पुरानी सड़ी खाद या कम्पोस्ट खाद+2 कि.ग्रा. करंज / नीम की खली+1.0 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट+50 ग्रा. क्लोरपाइरीफ़ॉस, 10% धूल/20 ग्रा. फ्यूराडान-3 जी/20 ग्रा. थीमेट-10 जी को गड्ढे की ऊपरी सतह की मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर गड्ढा भर देना चाहिए।
गड्ढे को खेत की सामान्य सतह से 10 से 15 सें.मी. ऊँचा भरना चाहिए। वर्षा ऋतु में गड्ढे की मिट्टी दब जाने के बाद उसके बीचों बीच में खुरपी की सहायता से पौधे की पिंडी के आकार की जगह बनाकर पौधा लगा देना चाहिए। पौधा लगाने के पश्चात उसके पास की मिट्टी को ठीक से दबा दें एवं पौधे के चारों तरफ एक थाला बनाकर 2 से 3 बाल्टी (25-30 ली.) पानी डाल देना चाहिए।
PC : डॉ. एसके सिंह प्रोफेसर सह मुख्य वैज्ञानिक(प्लांट पैथोलॉजी) एसोसिएट डायरेक्टर रीसर्च डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर बिहार
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