पशुपालन कर रहे पशुपलको के मन में व्यस्क पशुओं एवं नवजात पशुओं से जुड़े कई सवाल होते हैं। जिनका सही जवाब नहीं मिलने पर उनकी उलझने बढ़ती जाती हैं। कई बार पशुपालक सही जानकारी के आभाव में सुनी सुनाई बातो में आ जाते हैं।
जिसका परिणाम पशुओं के स्वास्थ्य बिगड़ने के रूप में सामने आता हैं। आज कृषि जागृति के पोस्ट के मध्यम से पशुपालकों द्वारा पशुपालन से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण सवालों के साथ कुछ महत्वपूर्ण टिप्स भी जान सकते है।
जन्म के आधे घंटे के अंदर नवजात पशुओं को खीस यानी मां का दूध पिलाना बहुत जरूरी हैं। इससे नवजात पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इसके साथ ही मादा पशुओं में थानेलां रोग होने की संभावना भी कम हो जाती हैं।
मक्का कई पोषक तत्वों से भरपूर हैं। इसे हरे एवं सूखे दोनों रूप में पशुओं को दिया जा सकता हैं। इसके सेवन से पशुओं के दूध के उत्पादन में बढ़ोतरी होती हैं।
सामान्य चारा की तुलना मे यूरिया से उगाएं गए चारे से अधिक मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं। हालांकि चारे एवं यूरिया का अनुपात सही होना बहुत जरूरी हैं। नहीं तो यूरिया की मात्रा ज्यादा होने पर यह पशुओं के लिए जानलेवा साबित हो सकता हैं।
अधिक मात्रा में दूध प्राप्त करने के लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं। इससे बचने के लिए सही समय पर उचित इलाज करना आवश्यक है। इलाज के लिए कई बार पशुओं को टीका लगवाना भी जरूरी होता हैं। हालांकि पशु चिकित्सक के परामर्श के बगैर गर्भवती पशुओं को किसी तरह की दवा या टीका नहीं लगवाना चाहिए।
तेल मिले हुए आहार का सेवन करने वाले पशुओं की पाचन क्षमता खराब हो सकती हैं। इससे पशुओं को पेट खराब या दस्त की शिकायत हो सकती हैं। पशुओं के दूध में वसा की मात्रा बढ़ाने के लिए उन्हें संतुलित आहार देना बहुत जरूरी हैं।
रोगी पशुओं का पाचन तंत्र कमजोर हो जाता हैं। ऐसे में उनके आहार की मात्रा कम करने की जगह उन्हें आसानी से पचने वाला आहार देना चाहिए। बीमार पशुओं के लिए भूसी का दरिया एक बेहतर विकल्प हैं। इसे तैयार करने के लिए सबसे पहले गेहूं की भूसी को उबाल कर ठंडा कर लें। इसके बाद इसमें उचित मात्रा में नमक एवं शीरा मिलकर पशुओं को खिलाए।
कई बार दीवार, पेड़, आदि से टकराने के बाद या चोट लगने से पशुओं की सींग से खून निकलने लगता हैं। ऐसा जरूरी नहीं कि केवल सींग के टूटने पर ही खून निकले। कई बार सींग का कवर निकलने पर भी सींग से खून निकलने लगता हैं।
ऐसे में पशुओं की सींगो को काट कर अलग करने की जगह उसका उपचार करना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले पोटेशियम परमेगनेट को पानी में मिला कर सींग को अच्छी तरह साफ करे। घाव के भरने तक या सींग के ऊपर पपड़ी जमने तक प्रति दिन 3 बार पशु चिकित्सक के द्वारा बताए गए स्प्रे या मलहम का प्रयोग करें।
मदकाल के संकेत मिलने के तुरंत बाद मादा पशुओं को गर्भाधान नहीं कराना चाहिए। मदकाल के मध्य या अंत में पशुओं को गर्भाधान करना बेहतर होता हैं।
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