गेहूं की फसल को रबी सीजन में लगाते है, इसलिए स्वाभाविक तौर पर यह ठंडा तापमान को पसंद करने वाली फसल है। गेंहू की वानस्पतिक वृद्धि के लिए ठंडक का होना बहुत ही आवश्यक है। लेकिन अत्यधिक ठंडक की वजह से गेहूं की पहली सिंचाई एवं कही कही पर गेहूं की दूसरी सिंचाई की वजह से तो कही कही पर गेहूं सिंचाई करने पर पानी लग जाने की वजह से गेंहू की नीचे की पत्तियां पीली हो रही होती है। जिसकी वजह से गेंहू उत्पादक किसान बहुत चिंतित हो जाते हैं।
उन्हें समझ में नहीं आ रहा होता है की आखिर इसका सही कारण क्या है और सही जवाब नही मिलने की वजह से किसान और चिंतित हो जाते हैं। इसलिए किसानों को यह जानना बहुत आवश्यक है की गेंहू की निचली पत्तियां आखिर पीली क्यों हो रही है। इसके पीछे का विज्ञान क्या है? सर्दियों के मौसम में मिट्टी में सूक्ष्मजीवी गतिविधियों पर बहुत ही महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है, जिससे पौधों द्वारा पोषक तत्व ग्रहण करने पर असर पड़ता है। सर्दियों के मौसम में सूक्ष्मजीव जीवन और पौधों के पोषक तत्वों के अधिग्रहण के बीच यह जटिल संबंध पारिस्थितिक तंत्र की पारिस्थितिक गतिशीलता को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सर्दियों में तापमान जब बहुत कम हो जाता है तो इस पर्यावरणीय कारक का मिट्टी में सूक्ष्मजीवो पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बैक्टीरिया और कवक जैसे सूक्ष्मजीव, पोषक तत्व चक्र और मिट्टी की उर्वरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए उनकी मेटाबॉलिज्म (चयापचय) प्रक्रियाएं तापमान से सीधे जुड़ी हुई हैं, और जैसे ही सर्दी शुरू होती है, समग्र माइक्रोबियल गतिविधि कम हो जाती है। सर्दियों के दौरान माइक्रोबियल गतिविधि में कमी का एक प्राथमिक कारण मेटाबॉलिज्म (चयापचय) दर पर कम तापमान का प्रभाव है। सूक्ष्मजीव, अन्य सभी जीवित जीवों की तरह, अपने चयापचय कार्यों के लिए अनुकूल विशिष्ट तापमान सीमाओं के भीतर काम करते हैं।
जैसे-जैसे तापमान गिरता है, माइक्रोबियल चयापचय प्रक्रियाएं धीमी हो जाती हैं, जिससे उनकी समग्र गतिविधि में कमी आती है। यह मंदी प्रमुख माइक्रोबियल कार्यों को प्रभावित करती है, जिसमें कार्बनिक पदार्थों का अपघटन और पोषक तत्वों का खनिजकरण शामिल है। कार्बनिक पदार्थों का अपघटन सूक्ष्मजीवों द्वारा सुगम की जाने वाली एक मौलिक प्रक्रिया है, जो जटिल कार्बनिक यौगिकों को सरल रूपों में तोड़ती है। यह अपघटन नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के साथ-साथ सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे आवश्यक पोषक तत्वों को मिट्टी में छोड़ता है, जिससे वे पौधों के ग्रहण के लिए उपलब्ध हो पाते हैं।
हालाँकि, सर्दियों के मौसम दौरान, इस प्रक्रिया की दक्षता में भारी कमी आ जाती है, और अपघटन दर कम हो जाती है। कार्बनिक पदार्थों के अपघटन में यह मंदी सीधे तौर पर पौधों के लिए पोषक तत्वों की उपलब्धता को प्रभावित करती है। इसके अलावा, ठंडे तापमान में रोगाणुओं द्वारा पोषक तत्वों का खनिजकरण भी बाधित होता है। सूक्ष्मजीव पोषक तत्वों के कार्बनिक रूपों को अकार्बनिक रूपों में परिवर्तित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जिन्हें पौधे आसानी से अवशोषित करते हैं।
इस खनिजकरण प्रक्रिया में एंजाइमेटिक गतिविधियाँ शामिल होती हैं, और ये एंजाइम विशिष्ट तापमान सीमाओं के भीतर बेहतर ढंग से कार्य करते हैं। सर्दियों में, ठंडा तापमान एंजाइमेटिक गतिविधि को बाधित करता है, जिससे पोषक तत्वों के खनिजकरण की दर कम हो जाती है। नतीजतन, पौधों को मिट्टी से आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जबकि सर्दियों के दौरान समग्र सूक्ष्मजीव गतिविधि कम हो जाती है।
सर्दियों के मौसम में अत्यधिक ठंडक की वजह से गेंहू के खेत में भी माइक्रोबियल गतिविधि कम हो जाती है, जिसके कारण से नाइट्रोजन का उठाव कम होता है, गेंहू के पौधे अपने अंदर के नाइट्रोजन को उपलब्ध रूप में नाइट्रेट में बदल देता है। नाइट्रोजन अत्यधिक गतिशील होने के कारण निचली पत्तियों से ऊपरी पत्तियों की ओर चला जाता है, इसलिए निचली पत्तियाँ पीली हो जाती हैं।
संतोष की बात यह है की यह कोई बीमारी नहीं है ये पौधे समय के साथ ठीक हो जाएंगे। यदि समस्या गंभीर हो तो 100 से 150 किलोग्राम 12 माह पुरानी सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट में 10 किलोग्राम जी-सी पावर और 10 किलोग्राम जी-प्रोम एडवांस और 500 मिली जी-बायो फॉस्फेट एडवांस को मिलाकर प्रति एकड़ गेहूं के खेत में छिड़काव कर पहली सिंचाई या दूसरी सिंचाई करें।
अत्यधिक ठंढक से गेंहू एवम अन्य फसलों को बचाने के लिए हल्की सिंचाई करनी चाहिए, यथासंभव खेतों के किनारे (मेड़) आदि पर धुआं करें। इससे पाला का असर काफी कम पड़ेगा। पौधे का पत्ता यदि झड़ रहे हो या पत्तों पर धब्बा दिखाई दे तो 15 मिली जी बायो फॉस्फेट एडवांस को 15 लीटर पानी के टैंक में मिलाकर गेहूं की फसल पर छिड़काव करने से पाला का असर कम हो जाता है। इससे फसल को नुकसान होने से बचाया जा सकता है।
PC: प्रोफेसर डॉ एसके सिंह विभागाध्यक्ष, पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी, प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना। डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर, बिहार
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