भारत में बैंगन की सब्जी की खपत आलू के बाद दूसरे नंबर की है। विश्व में चीन (54 प्रतिशत) के बाद भारत बैंगन की दूसरी सबसे अधिक पैदावार ( 27 प्रतिशत) वाला देश है। यह देश में 5.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में उगाया जाता है। बैंगन का पौधा 2 से 3 फुट ऊंचा खड़ा लगता है। फल बैंगनी या हरापन लिए हुए पीले रंग का या सफेद होता है।
बैंगन आकार में, गोल, अंडाकार या सेव के आकार का और लंबा तथा बड़े से बड़ा फुटबाल गेंद सा हो सकता है। लंबाई में एक फुट तक का हो सकता है। बैंगन वैसे तो बहुत आम सी दिखने वाली सब्जी है लेकिन साधारण सी दिखने वाली इस सब्जी में काफी गुण हैं, जिनके बारे में अधिकतर लोग नहीं जानते। बैंगन के नियमित सेवन से शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम होता है जिससे दिल के रोगों का रिस्क कम होता है।
बैंगन की फसल में लगने वाले रोगों का जैविक रोकथाम
नर्सरी के समय: बैंगन की नर्सरी तैयार करते समय इसमें डैंपिंग ऑफ जिसे पिथियम इंडिकम नामक रोग लग जाता है। इस रोग के रोकथाम के लिए 10 एमएल जी-बायो फॉस्फेट एडवांस या 10 एमएल जी-डर्मा प्लस को प्रति किलोग्राम बैंगन के बीज में मिलाकर उपचारित करें।
फल लगने के दौरान: नर्सरी लगाने के 1 माह बाद इसमें फल लगना शुरू हो जाता है। उस समय इसमें फ्रूट रॉट (फाइटपथोरा) रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है। इसके लिए 15 लीटर पानी के टैंक में 20 एमएल ट्राइजोफोस या 15 लीटर पानी के टैंक में 20 एमएल नीम एकस्ट्रेक्ट को मिलाकर बैंगन की फसल पर स्प्रे करें।
स्प्रे के 10 दिन बाद 15 लीटर पानी के टैंक में 15 एमएल जी-अमीनो प्लस और 15 एमएल जी-सी लिक्विड को मिलाकर बैंगन की फसल पर स्प्रे करें। ध्यान रखे प्रति एकड़ बैंगन की फसल स्प्रे करने के लिए 75 से 100 लीटर पानी के आवश्यकता होती है।
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