आम में वानस्पति मालफॉर्मेश (खराबी) को प्रबंधित करने के लिए निम्नलिखित उपाय करने इस इस विकार को आसानी से प्रबंधित किया जा सकता है जैसे..
कटाई छँटाई और साफ सफ़ाई: बीजाणुओं के प्रसार को रोकने के लिए उचित डिस्पोजल सुनिश्चित करते हुए, संक्रमित शाखाओं की तुरंत कटाई छंटाई करें। फंगल इनोकुलम बिल्डअप की संभावना को कम करने के लिए अच्छी स्वच्छता प्रथाओं को बनाए रखें। कटाई छटाई के उपरांत संक्रमित हिस्सों को जला दे या मिट्टी में गाड़ दे।
कवकनाशी का प्रयोग: इस रोग के रोगकारक के विकास को नियंत्रित करने के लिए कवकनाशी का उपयोग करें। जैसे ही इस रोग का लक्षण दिखाई दे तब तुरंत कार्बेन्डाजिम या थियोफैनेट-मिथाइल या साफ @2ग्राम/पानी पानी मे घोलकर छिड़काव करना चाहिए।संक्रमित पेड़ों से निकली हुई शाखा का इस्तेमाल नए पौधे बनाने के लिए नहीं करना चाहिए। जैसे ही रोग का लक्षण प्रकट हो, शाखा के आधार से 15 से 20 सेमी स्वस्थ भाग के साथ प्रभावित शाखावो को काट कर हटा दिया जाना चाहिए और जला दिया जाना चाहिए।
अक्टूबर के पहले सप्ताह के दौरान प्लैनोफिक्स @1 मिली दवा प्रति 3 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए एवम् यदि संभव हो तो आक्रांत कलियो को तोड़कर जला दे। जहा पर यह समस्या गंभीर हो वहा पर फूल निकालने से पहले कोबाल्ट सल्फेट @1 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से पुष्प विकृति को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
मृदा प्रबंधन: जलभराव को रोकने के लिए जल निकासी में सुधार करें, क्योंकि अतिरिक्त नमी फंगल विकास को बढ़ावा देती है। मिट्टी में इष्टतम नमी बनाए रखने और संक्रमण के खतरे को कम करने के लिए जैविक गीली घास लगाएं।
किस्म का चयन: वानस्पतिक विकृति के प्रति प्रतिरोध या सहनशीलता वाली आम की किस्मों का चयन करें। रोग के प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिरोधी किस्मों के साथ बगीचे में विविधता लाएं।
एकीकृत कीट प्रबंधन (आईडीएम): एक आईडीएम दृष्टिकोण लागू करें जो कल्चरल, जैविक और रासायनिक नियंत्रण विधियों को जोड़ता है। कवक के विकास को दबाने के लिए उसके प्राकृतिक शत्रुओं, जैसे लाभकारी सूक्ष्मजीवों का प्रयोग करें।
निगरानी और शीघ्र पता लगाना: वानस्पतिक विकृति के लक्षणों के लिए आम के बगीचों का नियमित निरीक्षण करें। शीघ्र पता लगने से रोग की गंभीरता को कम करते हुए तुरंत हस्तक्षेप की अनुमति मिलती है।
पोषक तत्व प्रबंधन: अत्यधिक नाइट्रोजन से बचने के लिए उर्वरक को संतुलित करें, क्योंकि यह पौधों को संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है। पोषक तत्वों के स्तर को निर्धारित करने और तदनुसार उर्वरक आवेदन को समायोजित करने के लिए मिट्टी परीक्षण करें।
अनुसंधान एवं विस्तार सेवाएँ: वनस्पति विकृति प्रबंधन पर नवीनतम शोध से अवगत रहें। रोग की रोकथाम और नियंत्रण पर मार्गदर्शन के लिए कृषि विस्तार सेवाओं के साथ सहयोग करें।
सारांश: आम में वानस्पतिक विकृति के प्रबंधन के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण में कल्चरल, रासायनिक और जैविक रणनीतियों का संयोजन शामिल है। आम के बागों पर इस बीमारी के प्रभाव को रोकने और कम करने के लिए उचित छंटाई, कवकनाशी का प्रयोग और मिट्टी प्रबंधन जैसे सक्रिय उपाय आवश्यक हैं। समग्र दृष्टिकोण अपनाकर, उत्पादक वानस्पतिक विकृति से जुड़े जोखिमों को कम करते हुए अपनी आम की फसलों के समग्र स्वास्थ्य और उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं।
PC : डॉ. एसके सिंह प्रोफेसर सह मुख्य वैज्ञानिक(प्लांट पैथोलॉजी) एसोसिएट डायरेक्टर रीसर्च डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर बिहार
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