मिट्टी में नमक जमा होने से भी पौधे को नुकसान पहुंचता है। हम सब जानते है कि नमक पानी को कितनी आसानी से सोख लेता है। नमक मिट्टी में समान गुण प्रदर्शित करता है और अधिकांश पानी को अवशोषित करता है जो आमतौर पर जड़ों के लिए उपलब्ध होता है। इस प्रकार, भले ही मिट्टी की नमी भरपूर मात्रा में हो, नमक की उच्च मात्रा के परिणामस्वरूप पौधों के लिए सूखे जैसा वातावरण पैदा हो जाता है।
जब नमक पानी में घुल जाता है, तो सोडियम और क्लोराइड आयन अलग हो जाते हैं और फिर पौधों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। क्लोराइड आयनों को जड़ों द्वारा आसानी से अवशोषित कर लिया जाता है, पत्तियों तक पहुँचाया जाता है, और वहाँ विषाक्त स्तर तक जमा हो जाता है। यदि यह जहरीले स्तर हैं तो पत्तीयों के किनारे झुलसे हुए दिखाई देते है, जैसा की फोटो में दिखाई दे रहा है।
नमक से होने वाले नुकसान को रोकने या कम करने के उपायों में कैल्शियम क्लोराइड का उपयोग करना, जहां संभव हो, या रेत का उपयोग करना शामिल है। यह खराब मिट्टी की उर्वरता के कारण ,मिट्टी और पानी में नमक के कारण से होता है अतः इसको कम करने के लिए ह्यूमीक एसिड, बीसीए, जिप्सम और विघटित जैविक उर्वरकों के साथ पर्याप्त जैविक खाद डालें।
जिप्सम मिट्टी की संरचना में सुधार करने में मदद करता है।मिट्टी अकार्बनिक कणों, कार्बनिक कणों और छिद्रों, पानी और मिट्टी के रोगाणुओं का एक जटिल मिश्रण है। इसकी संरचना मौसम की घटनाओं जैसे बारिश , जुताई से, या पौधों के विकास के लिए पोषक तत्वों को खींचने के कारण बदलती है। साल दर साल अच्छी फसल पैदावार बनाए रखने के लिए किसानों को अपनी मिट्टी का अच्छी तरह से प्रबंधन करना पड़ता है। मिट्टी की संरचना में सुधार से किसानों को कुछ सामान्य कृषि समस्याओं में मदद मिलती है।
जिप्सम को मिट्टी में मिलाने से वर्षा के बाद पानी सोखने की मिट्टी की क्षमता में वृद्धि होती है। जिप्सम का प्रयोग मृदा प्रोफाइल के माध्यम से मिट्टी के वातन और पानी के रिसाव में भी सुधार करता है। जिप्सम के इस्तेमाल से पानी की आवाजाही में सुधार होता है। यह खेत से बाहर फास्फोरस की आवाजाही को भी कम करता है।बारीक पिसा हुआ जिप्सम सिंचाई के पानी में घोलकर प्रयोग जा सकता है।
जिप्सम का प्रयोग रोपण से पहले या पेड़ के विकास की अवस्था में मिट्टी में किया जा सकता हैं। आम के पत्तों में इस तरह का लक्षण जिसमे पत्तियों के अंतिम शिरा का झुलसा ( टिपबर्न) दिखाई दे रहा है, इसके बाद पत्ती के किनारों के आसपास के क्षेत्र झुलसे हुए दिखाई दे रहा हैं। उचित उपचार शुरू करने के लिए इस स्थिति के कारण का पता लगाना अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
आम के पत्तों में टिपबर्न अक्सर तीन स्थितियों में से एक के कारण होती है, हालांकि हमेशा नहीं जैसे पहला कारण पौधे को पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है दूसरा कारण मिट्टी में नमक जमा हो गया है तीसरा मैग्नीशियम की कमी इस समस्या का एक और संभावित कारण हो सकता है।सभी एक ही समय में हो सकते हैं। यदि आप अपने पौधे को नियमित रूप से पानी देते हैं, तो आपको नमी की कमी के कारण आम के पत्तों की टिपबर्न दिखाई नहीं देगा।
आमतौर पर, छिटपुट सिंचाई या मिट्टी की नमी में अत्यधिक उतार-चढ़ाव एक प्रमुख कारण हो सकता है। जिसके परिणामस्वरूप टिपबर्न होता है। सिंचाई को नियमित करके नमी में उतार-चढ़ाव के कारण होने वाली टिपबर्न को कम किया जा सकता है। अपने पौधे को पानी देने का समय निर्धारित करें और नियमित रूप से सिंचाई करते रहें।
नमक भी एक प्रमुख कारण हो सकता है
यदि पौधे के आस पास जल निकासी खराब है, तो मिट्टी में नमक जमा हो सकता है, जिससे आम के पत्ते जल सकते हैं। यदि मिट्टी में नमक जमा हो गया है, तो नमक को जड़ क्षेत्र से बाहर निकालने के लिए भारी पानी देने का प्रयास करें। यदि मिट्टी में जल निकासी की समस्या है, तो जल निकासी चैनल बनाएं। बरसात के मौसम में हरी खाद की फसल के रूप में सनई, ढैचा, मूंग, लोबिया इत्यादि में से कोई एक को अंतरफसल के रूप में उगाएं और 50% फूल आने पर वापस जुताई करें। यह अभ्यास कम से कम 4 से 5 साल तक करना चाहिए।
मैग्नीशियम की कमी: इस प्रकार के लक्षण होने का एक कारण मैग्नीशियम की कमी भी हो सकता है। हर साल खेत में खूब सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट पेड़ की उम्र के अनुसार प्रयोग करना चाहिए। जिप्सम से भरी बोरी को बहते सिंचाई जल में रखने से नमक का प्रभाव कम हो जाता है। पोटेशियम की 2% का पत्तियों पर छिड़काव करने से भी इस विकार की उग्रता में कमी आती है। हर दो हफ्ते में दोहराएं।
PC : डॉ. एसके सिंह प्रोफेसर सह मुख्य वैज्ञानिक(प्लांट पैथोलॉजी) एसोसिएट डायरेक्टर रीसर्च डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर बिहार
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