खीरा यानी कुंकबर को अभी तक हम सिर्फ भोजन के दौरान सलाद के रूप में ही सबसे ज्यादा उपयोग करते हैं। पर इस कारामती सब्जी के बहुत सारे उपयोग हैं। यह हमारे शरीर की स्किन और शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद है। इसी गुण के कारण आज कॉस्मेटिक और फार्मा इंडस्ट्री में खीरे की बहुत बड़ी डिमांड है।
पेट की गड़बड़ी तथा कब्ज में भी खीरा को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। खीरा में अधिक मात्रा में फाइबर मौजूद होता हैं और ये कब्ज को दूर करता है। एक तरह से खीरे की फसल को एक नगदी फसल के रूप में भी जाना जाता है। पूरे भारत में खीरे की जैविक खेती बहुत कम पैमाने पर की जाती है।
खीरे की प्रमुख किस्में एवं बुवाई का सही समय
खीरे की प्रमुख किस्में है। स्वर्ण अगेती, खीरा 90, पूसा उदय, पूना खीरा एवं पूसा उदय, पूसा संयोग समेत तमाम प्रकार की किस्में भारत उगाई जाती है। पूसा संयोग एक हाइब्रिड किस्म का बीज है जो 50 दिन में तैयार हो जाती है।
प्रति एकड़ खेत से 30 से 40 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त कर सकते है। ग्रीष्म ऋतु में खीरे की बुआई फरवरी से लेकर अप्रैल तक के माह में की जाती है। वहीं वर्षा ऋतु में खीरे की बुवाई जून से जुलाई माह में की जाती हैं।
गैलवे कृषम के जैविक उत्पादों के साथ रोग मुक्त खीरे की जैविक खेती
खीरे की जैविक बुआई करने के लिए सबसे पहले खेत वाली भूमि को अच्छी तरह से तैयार करना जरूरी है। खेत को तैयार करने के लिए हमारे किसान भाई 5 टन प्रति एकड़ खेत में 12 माह पूरी सड़ी हुई गोबर की खाद में एक लीटर जी-बायो फॉस्फेट एडवांस को मिलाकर पूरे खेत में बिखेर कर अच्छी तरह खेत में मिला दें। ध्यान रहे इसके लिए खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी होना चाहिए।
खीरे की बुआई के समय 25 किलोग्राम डीएपी में 10 किलोग्राम जी-सी पावर या 10 किलोग्राम जी-प्रोम एडवांस और 4 से 8 किलोग्राम जी-वैम मिलाकर प्रति एकड़ खेत में इस्तेमाल करके बीज की बुवाई करें।
ध्यान रहे प्रति एकड़ खेत में खीरे की बुवाई के लिए 500 ग्राम बीज की जरूरत पड़ती हैं। प्रति किलोग्राम बीज को 10 मिली जी-बायो फॉस्फेट एडवांस से उपचारित करके 15 से 20 मिनट हवा लगने के बाद संध्या के समय बुवाई करें।
खीरे की जैविक बुवाई रेतीली दोमट मिट्टी और भारी मिट्टी में भी उगाया जा सकता है, लेकिन इसकी जैविक खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई एवं दोमट मिट्टी अच्छी रहती है। खीरे की जैविक खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए।
फिर खीरे की बुआई के 15 से 30 दिनों के बाद 25 किलोग्राम यूरिया और 10 किलोग्राम जी-सी पावर को मिलकर प्रति एकड़ खेत में लगाए गए पौधों की जड़ों में सिंचाई करके डाले या डाल कर सिंचाई करें। ध्यान रहे खीरे के पौधों की जड़ों के आस-पास प्रति पौधा इस मिश्रण को 50 से 100 ग्राम से अधिक नहीं देना हैं, और जमीन की नमी को बनाए रखें।
इस मिश्रण को डालने के 10 दिन बाद 150 लीटर पानी में 100 किलोग्राम ताजी गोबर के साथ 100 से 200 एमएल जी-बायो ह्युमिक और 100 से 200 एमएल जी-सी लिक्विड को अच्छी तरह मिलाकर प्रति एकड़ खेत में लगाएं गए खीरे के पौधों में थाला बना कर प्रति पौधा एक से डेढ़ मग डालें। ध्यान रहे जमीन में नमी बना रहें।
फिर खीरे की फसल में फूल और फल बनते समय 100 से 200 एमएल जी-अमीनो प्लस और 100 से 200 एमएल जी-बायो ह्यूमिक एवं 100 से 200 एमएल जी-सी लिक्विड को 150 लीटर पानी में मिलाकर कर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करें।
खीरे की फसल में लगने वाले रोग
अगर खीरे की फसल को सही तरह से देखभाल न की जाए तो इसमें एफिड, फल मक्खी, पत्ती खाने वाली सुंडी, एंथ्रोकनोज, बैक्टीरियल विल्ट, पाउडरी मिल्डयू, मौजेक जैसे कई रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है। इन रोगों के आने से पहले कृषि जागृति द्वारा बताए गए इस बेहतर मैनेजमेंट के द्वारा किसान भाई अपनी फसल को बचा सकते हैं और अपनी लागत को भी नियंत्रित कर सकते हैं।
गैलवे कृषम के जैविक उत्पादों को खीरे की फसल में उपयोग करने के लाभ
मिट्टी से संबंधित रोग नहीं पनप पाते हैं। मिट्टी से पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं तथा पौधों को सीधा रखने में मदद मिलती है। जड़ को गहराई तक ले जाने में कल्ले बनाने में, शाखाएं बनाने में, फूलों तथा फलों की संख्या बढ़ाने में मदद मिलती है।
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