मक्के के फसल में खरपतवार किसानो के लिए एक बड़ी समस्या बनी रहती है। जिससे फसल को पैदावार एवं गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता हैं। बात करे मक्के की खेती की तो खरपतवार मक्के की पैदावार में औसतन 35 प्रतिशत तक कमी ला सकते हैं।
मक्के के खेत में खरपतवारो पर नियंत्रण करने के लिए किसान रासायनिक विधि का प्रमुखता से प्रयोग करते हैं। लेकिन कृषि जागृति के इस पोस्ट के माध्यम से आप मक्के की फसल में उगने वाले खरपतवारो को नियंत्रण करने के लिए रासायनिक विधि के साथ साथ जैविक एवं यांत्रिक विधि की भी जानकारी विस्तार से प्राप्त कर सकते हैं।
मक्के के खेत में खरपतवारो को नियंत्रण के लिए यांत्रिक विधि
इस विधि में किसान आपने हाथो से या कुछ विशेष मिनी कृषि यंत्रों की सहायता से मक्के के खेत में निकले खरपतवारो को नियंत्रण कर करते हैं। जिससे खेत की निराई गुड़ाई भी हो जाती हैं।
इस विधि से खरपतवारो को नियंत्रण करने के लिए समय एवं श्रम दोनो की आवश्यकता अधिक होती हैं। बड़े क्षेत्रों के लिए यह विधि इतनी कारगर नहीं साबित होती हैं।
मक्के के खेत में उगने वाले खरपतवारो को नियंत्रण के लिए जैविक विधि
मक्के के खेत में उगे जैविक विधि से खरपतवारो को नियंत्रण करने के लिए कई बार खेत में केंचुए एवं कुछ अन्य कीड़े या बैक्टीरिया को छोड़ा जाता हैं या जैव उर्वरकों का छिड़काव किया जाता है।
मक्के के खेत में उगने वाले खरपतवारो को नियंत्रण करने के लिए रासायनिक विधि
मक्के के खेत में चौड़ी पति वाले खरपतवारो को नियंत्रण करने के लिए बुआई से 30 से 35 दिनों बाद प्रति एकड़ खेत मे 500 ग्राम डी सोडियम साल्ट का प्रयोग कर सकते हैं।
मक्के की बुआई से 40 दिनों बाद प्रति एकड़ खेत मे 80 से 100 मिलीग्राम टेंबोट्रियोन 42 प्रतिशत एस सी यानी लौडिस बायर का प्रयोग कर के भी मक्के के खेत में उगने वाले खरपतवारो को नियंत्रण कर सकते हैं।
ध्यान रहे इन रसायनों का इस्तेमाल उचित मात्रा में करे नहीं तो ये रसायन मक्के की फसल पर भूरा सर भी कर सकते हैं। इसलिए हो सके तो पहले जैविक विधि से खरपतवारों को नियंत्रण करे।
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