यदि आपके लीची के फल का पेड़ 15 वर्ष या 15 वर्ष से ज्यादा है तो उसमे 500 से 550 ग्राम डाइअमोनियम फॉस्फेट, 850 ग्राम यूरिया एवं 750 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश एवं 25 किग्रा खूब अच्छी तरह से सडी गोबर की खाद पौधे के चारों तरफ मुख्य तने से 2 मीटर दूर रिंग बना कर खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए।
यदि आपका लीची के फल का पेड़ 15 वर्ष से छोटा है तो उपरोक्त खाद एवं उर्वरक के डोज में 15 से भाग दे दे, इसके बाद जो आएगा उसमे पेड़ की उम्र से गुणा कर दे यही उस पेड़ के लिए खाद एवं उर्वरकों का डोज होगा। जिन बगीचों में जिंक की कमी के लक्षण दिखाई दे उनमें 150 से 200 ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति वृक्ष की दर से सितम्बर माह में अन्य उर्वरकों के साथ देना लाभकारी पाया गया है।
बोर्डो पेस्ट से पेड़ों के आधार की पुताई
विभिन्न फफूंद जनित बीमारियों से लीची के फल का पेड़ को बचाने के लिए आवश्यक है कि पेड़ के चारो तरफ, जमीन की सतह से 5 से 5.30 फीट की ऊंचाई तक बोर्डों पेस्ट से पुताई करें।प्रश्न यह उठता है कि बोर्डों पेस्ट बनाते कैसे है। यदि बोर्डों पेस्ट से साल में दो बार प्रथम जुलाई- अगस्त एवम् दुबारा फरवरी-मार्च में पुताई कर दी जाय तो अधिकांश फफूंद जनित बीमारियों से बाग को बचा लेते है।
इसका प्रयोग सभी फल के पेड़ो पर किया जाना चाहिए। बोर्डों पेस्ट बनाने के लिए आवश्यक सामान कॉपर सल्फेट, बिना बुझा चुना (कैल्शियम ऑक्साइड ), जूट बैग, मलमल कपड़े की छलनी या बारीक छलनी, मिट्टी/ प्लास्टिक / लकड़ी की टंकी एवं लकड़ी की छड़ी। कॉपर सल्फेट 1 किलो ग्राम, बिना बुझा चूना -1 किलो, पानी 10 लीटर
इस घोल को बनाने की विधि
पानी की आधी मात्रा यानी 5 लीटर पानी में में 1 किग्रा कॉपर सल्फेट को मिलाए इसके बाद बचे 5 लीटर पानी से 1 किग्रा चूने को बूझावे, शेष पानी में मिलावे इसके बाद इन दोनो घोलो को मिलाए, इस दौरान लकड़ी की छड़ी से लगातार हिलाते रहे। इस प्रकार से 10 लीटर बोर्डो पेस्ट तैयार हो जाएगा। यदि 20 लीटर बोर्डो पेस्ट बनाना है तो सभी उपरोक्त चीजों की मात्रा को दुगुना कर दे,30 लीटर बनाना है तीन गुना कर दे। इसी प्रकार आपको जितना बोर्डो पेस्ट बनाना है उपरोक्त मात्रा की गड़ना करके बनाए।
घोल बनाते समय ध्यान रखने योग्य बातें
किसानो को बोर्डो पेस्ट का घोल तैयार करने के तुरंत बाद ही इसका उपयोग बगीचे में कर लेना चाहिए। बोर्डो पेस्ट का घोल तैयार करते समय किसानो लोहें या गैल्वेनाइज्ड बर्तन को काम में नहीं लेना चाहिए। यह ध्यान रखना है की वे बोर्डो पेस्ट को किसी अन्य रसायन या पेस्टिसाइड के साथ में इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
समस्याएँ एवं निदान
लीची की मकड़ी (लीची माइट): जुलाई महीने में 15 दिनों के अंतराल पर क्लोरफेनपीर 10 ईसी @ 3 मिलीलीटर / लीटर) या प्रोपारगिट 57 ईसी @ 3 मिलीलीटर प्रति लीटर के दो छिड़काव करना चाहिए। अक्टूबर महीने में नए संक्रमित टहनियों की कटनी छंटनी करके क्लोरफेनपीर 10 ईसी (3 मिलीलीटर / लीटर) या प्रोपारगिट 57 ईसी (3 मिलीलीटर / लीटर) का छिड़काव करने से लीची माईट की उग्रता में भारी कमी आती है।
टहनी छेदक (शूट बोरर) : सायपरमेथ्रिन @1.0 मि.ली./ली. घोल का कोपलों के आने के समय 7 दिनों के अंतराल पर दो छिड़काव करना चाहिए।
छिलका खाने वाले पिल्लू (बार्क इटिंग कैटरपिलर): तनों में छेदक अपने बचाव के लिए टहनियों के ऊपर अपनी विष्टा की सहायता से जाला बनाते हैं। इनके प्रकोप से टहनियां कमजोर हो जाती हैं और कभी भी टूटकर गिर सकती है। इसका रोकथाम भी जीवित छिद्रों में पेट्रोल या नुवान या फार्मलीन से भीगी रुई ठूंसकर चिकनी मिट्टी से बंद करके किया जा सकता है। इन कीड़ों से बचाव के लिए बगीचे को साफ़ रखना श्रेयस्कर पाया गया है।
PC : डॉ. एसके सिंह प्रोफेसर सह मुख्य वैज्ञानिक(प्लांट पैथोलॉजी) एसोसिएट डायरेक्टर रीसर्च डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर बिहार
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