फसलों की सिंचाई के पानी की गुणवत्ता फसल उत्पादन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि यह पौधों की वृद्धि, उपज और समग्र स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है। सिंचाई के पानी की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए कई मापदंडों का उपयोग किया जाता है, और ये पैरामीटर फसलों पर विभिन्न प्रभाव डाल सकते हैं। एक प्रमुख चिंता का कारण पानी में नमक की मौजूदगी है, जिससे मिट्टी में लवणता की समस्या हो सकती है। सिंचाई जल के कुछ महत्वपूर्ण गुणवत्ता मानदंड और फसलों पर उनके प्रभाव, साथ ही खारे सिंचाई जल से फसलों को बचाने के नीचे उपाय दिए गए हैं।
लवणता: ये गुण सिंचाई के पानी में लवणता को प्रदर्शित करता है। गहरे बोरवेल के पानी में यह समस्या अधिक होती है। कई जगह कुवों का पानी भी लवणीय होता है। सिंचाई के पानी में लवणता के उच्च स्तर से मिट्टी में लवणीयता हो सकती है, जिससे पौधों के जल ग्रहण और पोषक तत्वों के अवशोषण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
इसके परिणामस्वरूप, फसल की वृद्धि, उपज और गुणवत्ता में कमी आ सकती है। अब इसको बदला तो नहीं जा सकता है लेकिन कुछ उपाय करके नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है। लीचिंग एक ऐसा ही उपाय है जिसमे जड़ क्षेत्र से अतिरिक्त नमक बाहर निकाला जाता है। इसके लिए सिंचाई करते समय अतिरिक्त पानी दिया जाता है। दूसरा है ऐसी फसलों और किस्मों का चयन जो लवणीय स्थितियों के प्रति अधिक सहनशील हों।
सोडियम: ये पानी में उपस्थित दूसरा अवयव है जो मिटटी को बहुत प्रभावित करता है। ज्यादा सोडियम वाले पानी से नियमित सिंचाई करने पर मिटटी की संरचना बिगड़ जाती है और पारगम्यता कम हो जाती है। परिणामस्वरूप जल निकासी बेकार हो सकती है, जिससे जड़ विकास और पोषक तत्व ग्रहण प्रभावित होता है। बचाव के लिए मिट्टी में “जैव उर्वरक यानी जैविक खाद के साथ गैलवे कृषम के जैविक उत्पादों को मिलाने से मिट्टी की संरचना में सुधार करने और सोडियम के नकारात्मक प्रभावों को कम करने में मदद मिलती है।
क्षारीयता: नियमित रूप से ज्यादा pH और ज्यादा सोडियम वाले पानी से सिंचाई करने पर मिटटी क्षारीय होने लगती है। बढ़ी हुई क्षारीयता से मिट्टी का पीएच बढ़ सकता है, जिससे पोषक तत्वों की उपलब्धता प्रभावित होती है। कुछ फसलें उच्च पीएच स्तर के प्रति संवेदनशील होती हैं। बचाव के लिए अम्लीयता बढ़ाने वाले अवयवों जैसे गंधक का उपयोग जैव उर्वरक यानी जैविक खाद का छिड़काव करना चाहिए।
विषैले तत्व (जैसे, बोरान, क्लोराइड): बहुत सी बार सिंचाई जल में बोरोन और क्लोराइड की अधिकता होती है। इनका अत्यधिक स्तर पौधों के लिए जहरीला हो सकता है, जिससे विकास रुक सकता है, पत्तियों को नुकसान हो सकता है और पैदावार कम हो सकती है। सामान्य अवस्थाओं में इसका ज्ञान किसान को नहीं होता। जब किसान मिटटी परिक्षण जैसी चीजों से अभी दूर है तो पानी के परिक्षण पर पहुँचने में तो भी बहुत समय लगेगा। सुरक्षा उपाय के नाम पर आप अच्छी और बुरी गुणवत्ता के पानी को मिलाकर प्रयोग करें।
मिटटी के ख़राब होने में एक बड़ा योगदान सिंचाई जल की गुणवत्ता है, “लठ” लेकर यूरिया और “डीएपी” के पीछे भागने से कुछ नहीं होगा। जिन किसान बंधुओं के यहाँ सिंचाई जल खारा है या नहीं है दोनों ही परिस्थिति में एक बार परिक्षण करवा लेना चाहिए, और जहाँ पानी लवणीय है उन्हें नियमित रूप से अपने मिटटी और पानी का परिक्षण कराते रहना चाहिए ताकि सही समय पर स्थितियों को सुधारा जा सके।
फसलों के उचित प्रबंधन के लिए सिंचाई जल की गुणवत्ता, मिट्टी की स्थिति और फसल प्रदर्शन की नियमित निगरानी आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, कृषि विशेषज्ञों के साथ अपनी स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर चर्चा कर समाधान प्राप्त करें, जो कि किसान भाई करेंगे नही। किसान भाई बस उधार खाद बीज देने वाले दुकानदार के पास जाकर उन्हीं को विशेषज्ञ मानकर, सब कुछ बताएंगे भी और उन्हीं की मानेंगे।
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