खीरा का उपयोग सलाद, सैंडविच, रायता और कई व्यंजनों को बनाने के लिए होता है। यह न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि यह हमारे स्वास्थ के लिए भी फयंदेमंद काफी फायदेमंद होता हैं। इसका सेवन हमारे शरीर में पानी की कमी को पूरा करता हैं। इसलिए गर्मी के मौसम में इसकी मांग काफी बढ़ने लगती हैं। खीरे की खेती की बात करे तो पंजाब, हरियाणा, उतर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के किसानों द्वारा बड़े पैमाने कि जाती हैं। खीरा की रोगमुक्त फसल प्राप्त करने के लिए खीरा की जैविक खेती करना जरूरी है। कृषि जागृति के इस पोस्ट से खीरा की जैविक खेती के लिए उन्नत किस्में, उपायुक्त मिट्टी, उपयुक्त जैव उर्वरक, उपयुक्त सीचाई, आदि के बारे में जान सकते है।
भूमि का चयन: खीरे की जैविक खेती करने के लिए रेतीली दोमट मिट्टी से लेकर भारी मिट्टी के अलावा अलग-अलग तरह की मिट्टी में की जा सकती हैं। लेकिन खीरे की जैविक फसल से बेहतर पैदावार प्राप्त करने के लिए जैविक तत्वों से भरपूर दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है। इसकी जैविक खेती के लिए मिट्टी का PH मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए।
बीज की मात्रा एवं बीज का उपचार: बीज की मात्रा उन्नत किस्मों पर निर्भर करती हैं। सामान्यत: प्रति एकड़ खेत के लिए लगभग 300 से 500 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। प्रति किलोग्राम बीज को 10 मिली जी-बायो फॉस्फेट एडवांस से उपचारित करें।
खीरे की बीज का चयन: खीरा की जैविक खेती के लिए सहीं बीज का चयन करना महत्वपूर्ण है। क्योंकि खीरे की फसल से बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए सही बीज का चयन करना महत्वपूर्ण है। उच्च गुणवत्ता वाले और बीमारियों के प्रति सहनशील बिजो का उपयोग करे। उच्च उत्पादन और खीरे की अच्छी गुणवत्ता के लिए विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए हाइब्रिड बीजों का उपयोग करे।
खीरे की उन्नत किस्में: खीरा की जैविक फसल से बेहतर पैदावार प्राप्त करने के लिए शाइन-वंडर स्ट्राइक एफ 1, आइरिस-दावत एफ 1, वीएनआर-कुमुद एफ 1, नामथरी-एनएस 404, ऊर्जा-मास्टर एफ 1 हाइब्रिड, सिंजेंटा-काफ्का, सेमिनिस-मिलिनी, शाइन-वांडर स्ट्राइक एफ 1, आइरिस-इंद्र एफ 1 हाइब्रिड, बीएनआर सीयू 2, सेमिनिस-पद्मिनी किस्में का चयन कर सकते हैं।
खीरे के खेत की तैयारी: खीरे की जैविक खेती के लिए खेत की उचित तैयारी भी पैदावार को बढ़ावा देती हैं। खेत के खेत को तैयार करने के लिए 5 टन 12 माह पुरानी सड़ी हुई गोबर की खाद बिखेर कर एक गहरी जुताई करे। जुताई करने के बाद कुछ दिनों तक धूप लगने दें। फिर मिट्टी को जैव उर्वरकों से उपचार करें।
उर्वरक प्रबंधन: खीरे की फसल में जैव उर्वरक का प्रयोग करने से पौधों को सभी पोषक तत्व एवं सूक्ष्म पोषक मिलते हैं। जिससे पौधों के विकास के साथ खीरे की रोग मुक्त फसल एवं बेहतर पैदावार प्राप्त होती है। खेत तैयार करने के लिए 150 किलोग्राम 12 माह पुरानी सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट में 10 किलोग्राम जी सी पावर और एक लीटर जी बायो फॉस्फेट एडवांस को किसी छायादार स्थान पर मिलाकर 30 मिनट हवा लगने के बाद संध्या के समय प्रति एकड़ खेत में बिखेर कर दो बाहर हल्की जुताई कर मिट्टी को समतल व भुरभुरी बना ले।
समय पर बुआई: खीरे की बुआई को समय पर करना भी महत्वपूर्ण है। विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार इसकी जैविक बुआई अलग-अलग समय की जाती हैं। ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए इसकी बुआई 1 जनवरी से 31 मार्च तक कर सकते हैं।वर्षा ऋतु की फसल के लिए 10 मई से 31 जुलाई तक बुआई कर सकते हैं। वही पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी बुआई मार्च एवं अप्रैल महीने में की जाती हैं।
खीरे की जैविक बुआई की विधि: अच्छी तरह से तैयार किए हुए खेत में 1.5 से 2 मीटर की दूरी पर मेड बना ले और बीजो के बीच 2 से 3 फुट की दूरी रखें और बीज की बुआई 1 से 2 सेंटीमीटर की गहराई पर करे। मेडो पर बीज बोने के लिए गढ़े बना ले और प्रत्येक गढ़े में 2 से 3 बीज की बुआई करे। ध्यान रहे बीजों को उपचारित जरूर करें।
खीरे की सिंचाई: सही समय पर सिंचाई करने से खीरे की पैदावार में वृद्धि होती है। सिंचाई के समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि खेत में जल जमाव की स्थिति उत्पन्न न हो। इस समस्या से बचने के लिए खीरे के खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें। खीरा की जैविक फसल में मिट्टी में मौजूद नामी के आधार पर सिंचाई करे। बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करे। गर्मी के मौसम में हर 7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करे। वर्षा होने पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
खरपतवार प्रबंधन: खीरे के खेत में खरपतवार की समस्या से निजात पाने के लिए आवश्यकता के अनुसार निराई गुड़ाई निरंतर करते रहे। बुआई के 15 से 20 दिन बाद 150 किलोग्राम 25 किलोग्राम यूरिया और 10 किलोग्राम प्रोम एडवांस और 4 किलोग्राम जी वैम को किसी छायादार स्थान पर मिलाकर प्रति एकड़ खेत में का छिड़काव करें। फिर बुआई से 30 से 35 दिन बाद 25 किलोग्राम यूरिया और 10 किलोग्राम जी सी पावर और 4 किलोग्राम जी वैम को किसी छायादार स्थान पर मिलाकर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें। ध्यान रहे खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी बना रहें।
रोग एवं किट नियंत्रण: खीरा की फसल में फल मक्खी, कद्दू का लाल किट, पति सुरंगी कीट, खीरा मोजेक वायरस रोग, चूर्णीत आसिता रोग जैसे कई रोग एवं कीटो का प्रकोप अधिक होता है। इसलिए खीरे की फसल को रोगों एवं कीटो से बचाने के लिए समय-समय पर रोग प्रबंधन और किट प्रबंधन के लिए जैविक उपचार करे। किसी भी रोग एवं किट के लक्षण नजर आने पर तुरंत जैविक उपचार करें। जैविक उपचार के लिए 150 लीटर पानी में एक लीटर जी बायो फॉस्फेट एडवांस को किसी प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करें।
प्रुनिंग ओर स्टेकिंग तकनीक: प्रुनिंग ओर स्टेकिंग तकनीकों का उपयोग करके खीरे के पौधों को बेहतर रूप से विकसित किया जा सकता है। साथ ही उपज को भी बढ़ाया जा सकता हैं।
फलों की तुड़ाई एवं पैदावार: खीरे की बुआई से 45 से 60 दिनों के बाद फलों की पहली तुड़ाई की जा सकती हैं। प्रति एकड़ खेत से ओसातन 50 से 100 क्विंतिल तक उपज प्राप्त की जा सकती हैं।हालाकि इसकी उपज विभिन्न किस्मों, मौसम एवं क्षेत्रों के अनुसार कम या अधिक हो सकती हैं।
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