कृषि जागृति

बागवानी की राह में रोड़ा बनने लगा फ्लोराइड जो मानव स्वास्थ्य पर ऐसे कर रहा अटैक

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जयपुर राजस्थान जिले में पेयजल में निर्धारित मात्रा से अधिक फ्लोराइड मावन स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, अपितु खेत की मिट्टी और बागवानी पौधों के लिए भी सही नहीं होता है। कृषि वैज्ञानिकों की माने तो फ्लोराइड युक्त पानी से सिंचाई करने पर बागवानी पौधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस तरह के पानी से लगतार सिंचाई करने से दो-चार साल बाद पौधा पूरी तरह से नष्ट हो जाता है। इस कारण किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे ही कुछ हालात अमरूदों के गढ़ सवाई माधोपुर में नजर आना शुरू हो गए है।

किसानों की माने तो अब अमरूद की खेती में पानी का खास ध्यान रखना पढ़ रहा है। जिन क्षेत्रों में पानी में ज्यादा पीपीएम में फ्लोराइड विद्यमान है, उन क्षेत्रों के किसान बरसाती पानी के सहारे ही अमरूद की खेती करने का जोखिम उठाते है। गौरतलब है कि इस जिले के अधिकतर किसान परंपरागत फसल के साथ साथ अमरूद की बागवानी से जुड़े हुए हैं।

जिसमें लागत पानी खर्चा अधिक होने के कारण खेतीबाड़ी व्यवसाय घाटे का सौदा साबित होने लगा है। विभागीय सूत्रों के अनुसार कुछ क्षेत्रों के बोरवेलों का पानी बागवानी फसल की सिंचाई के लिए उपयुक्त नहीं रह गया है। इससे अमरूद की खेती पर विपरित प्रभाव पड़ने लगा है। सिंचाई के लिए इन में नहरी पानी उपलब्ध नहीं है। इस कारण किसान फार्मपौंड खुदवाकर ही अमरूद की बागवानी को अपना रहे हैं।

फ्लोराइड के असंतुलित से मावन के शरीर के दांत और हड्डी के साथ स्रायु तंत्र पर भी बुरा असर पड़ता है। एक लीटर पानी में फ्लोराइड अगर 0.1 मिलीग्राम से कम हो तो दांत सड़ने लगते हैं, वही डेढ़ मिलीग्राम से ज्यादा होने पर ओस्ट्रियोपोरोसिस यानी हड्डियां कमजोर हो जाती है और 10 मिलीग्राम से ज्यादा होने पर स्केलेटल फ्लोरोसिस यानी हड्डियों के डेढ़े होने होने के लक्षण दिखने लगते हैं। सही मात्रा में फ्लोराइड दांतों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है,

इसलिए इसकी कमी होने पर पानी में सिलिको फ्लोराइड मिलाना पड़ता है। स्वास्थ्य की इस गंभीर समस्या से समुदायों को प्रशिक्षित और जागरूक करके ही छुटकारा पाया जा सकता है। फ्लोराइड युक्त पानी की समस्या से सवाई माधोपुर ही नहीं बल्कि बाड़मेर, जयपुर, टोंक, बूंदी, जोधपुर, नागौर, चारु, भरतपुर, धौलपुर, प्रतापगढ़, झालावाड़ आदि जिले शामिल है।

उद्यानिकी वैज्ञानिक डॉ रामराज मीणा ने बताया कि अमरूद का पौधा 8.5 पीएच तक अपना जीवन चला लेता है। लेकिन पानी में इस मात्रा से ज्यादा फ्लोराइड होने पर पौधा अपना जीवन खोना शुरू कर देता है। उन्होंने बताया कि सवाई माधोपुर के साथ साथ दौसा जिले में भी यह समस्या किसानों से सुनने को मिली है। फ्लोराइड युक्त पानी से सिंचाई करने पर पौधे की ग्रोथ रुक जाती है। पत्तियां पीली होकर झड़ने लगती है। इसलिए उचित मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिलने के कारण पौधा 2 से 3 साल झाड़ी की शक्ल में बदलकर नष्ट हो जाता है।

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