संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ बीआर चौधरी ने बताया कि लो टनल तकनीक से खेती की मदद से पौधे सर्दियों में कम तापमान और पाले से बच जाते हैं। इस लो टनल के अंदर का तापमान बाहरी वातावरण के तापमान से 6 से 8 डिग्री सेल्सियस अधिक होने के कारण पौधों की वानस्पतिक वृद्धि होती रहती है। मौसम फसल के अनुकूल होने के बाद टनल को हटा दिया जाता है। इस तरह से किसान लो टनल तकनीक में कद्दूवर्गीय सब्जियों की अगेती खेती अथवा बेमौसम खेती करके अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है।
इसके उपयोग से हवा का तापमान, प्रकाश की तीव्रता, हवा की आर्द्रता आदि को नियंत्रण किया जा सकता है। अगेती फसल होने के कारण देश के गर्म शुष्क क्षेत्रों में अप्रैल-मई माह के प्रचंड तापमान से कद्दू वर्गीय सब्जियों की फसल बच जाती है और सामान्य दशा में बुवाई की गई फसल से उत्पादन और गुणवत्ता भी अच्छी होती हैं। संस्थान द्वारा किए गए शोध के मुताबिक इस लो टनल तकनीक से सब्जी फसलों की पैदावार, मैदानी फसलों की तुलना में 40 फीसदी ज्यादा मिलती है। अगेती फसल होने से किसान को बाजार भाव अच्छे मिलते हैं।
लो टनल तकनीक व मैदानी फसलों के उत्पादन में अंतर
लौकी लो टनल तकनीक से उत्पादन 350 से 400 क्विंटल प्रति हैक्टेयर और ओपन फील्ड में 200 से 250 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होता है।
तोरई लो टनल तकनीक से उत्पादन 200 से 230 क्विंटल प्रति हैक्टेयर और ओपन फील्ड से 160 से 180 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होता है।
खरबूजा लो टनल तकनीक से उत्पादन 180 से 220 क्विंटल प्रति हैक्टेयर और ओपन फील्ड से 140 से 160 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होता है।
तरबूज लो टनल तकनीक से उत्पादन 370 से 400 क्विंटल प्रति हैक्टेयर और ओपन फील्ड से 200 से 260 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होता है।
ककड़ी लो टनल तकनीक से उत्पादन 200 से 230 क्विंटल प्रति हैक्टेयर और ओपन फील्ड से 130 से 170 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होता है।
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