गर्भकाल के आखिरी 3 महीने में बच्चे का विकाश तेजी से होता हैं। इसके साथ ही इस समय मादा पशुओं में दूध ग्रंथियों का विकाश भी तेजी से होता हैं। इसलिए इस दौरान इस समय मादा पशुओं को अधिक देखभाल की आवश्यकता होती हैं। इस समय मादा पशुओं की उचित देखभाल नहीं करने से प्रसव में कठिनाई, प्रसव के दौरान बच्चेदानी का बाहर आना, जोर रुकने जैसी समस्याएं होती हैं।
कई बार मादा पशुओं की मृत्यु की भी संभावना होती हैं। इन समस्याओं से बचने के लिए गर्भावस्था के आखिरी 2 महीने मादा पशुओं की देखभाल के लिए शुष्क काल पर रखे। अगर आप पशुओं में शुष्क काल के बारे में नहीं जानते या आपके मन में इससे जुड़े सवाल उठ रहे हैं तो कृषि जागृति के इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।
पशुओं के लिए शुष्क काल क्या है!
गर्भावस्था के आखिरी 2 महीने को शुष्क काल यानी सुखी अवधि या ड्राई पीरियड कहा जाता हैं। इस दौरान पशुओं को अधिक आराम देने के लिए दूध निकालने का काम बंद कर दिया जाता हैं। सामान्य भाषा में इस प्रक्रिया को दूध गर्मी के मौसम में कैसे रखे।
पशुओं का ध्यान गर्मी के मौसम में कैसे रखे। दूध सुखाने मै लगभग 18 घंटे लगते हैं। कई बार इससे ज्यादा समय भी लगता हैं। अधिक दूध उत्पादन करने वाली गायों के दूध सुखाने मै 7 से 14 दिनों तक का समय लग सकता हैं। ऐसे में थानेले रोग के होने का खतरा बढ़ जाता हैं।
पशुओं का शुष्क काल कितने दिनों का होना चाहिए!
गौ वंश के पशुओं में शुष्क काल की अवधि लगभग 60 दिनों की होनी चाहिए। यह अवधि पशुओं के दूध देने की क्षमता के अनुसार कम या अधिक हो सकती हैं। कई बार पशुपालक शुष्क काल केवल 40 दिन या इससे भी कम समय तक रखते हैं।
जिससे दूध ग्रंथि ऊतकों का विकाश अच्छी तरह नहीं हो पाता है। जिससे अगले व्यांत में दूध उत्पादन में 20 से 40 प्रतिशत तक कमी आती हैं।इसके विपरीत शुष्क काल की अवधि 70 दिनों से अधिक होने पर भी दूध उत्पादन में वृद्धि नहीं होती हैं। साथ ही पशुओं में व्याने के समय कई तरह की परेशानियां भी होती हैं।
पशुओं के लिए शुष्क काल के फायदे!
पशुओं के दूध उत्पादन में वृद्धि होती हैं। दूध की गुणवत्ता बेहतर होती हैं। मादा पशुओं का स्वास्थ्य बेहतर होता हैं। पशुओं के आयनों का पुनजीवीकरण होता हैं। पशुओं का शरीर अगली ब्यांत के लिए बेहतर होता हैं।
अगली ब्यांत में थानेले रोग होने की संभावना कम हो जाती हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने लगती हैं। पशुओं को दिए जाने वाले आहार की मात्रा को कम करके लागत कम करने में मदद मिलती हैं।
शुष्क काल के दौरान इन बातों का रखे खास ध्यान!
शुष्क काल के समय मादा पशुओं के रहने एवं खाने पीने की व्यवस्था अलग से करें। शुष्क काल के दौरान मादा पशुओं को विटामिन ए, विटामिन डी, विटामिन ई, एवं सेलेनियम जैसे पोषक तत्वों से भरपूर आहार का सेवन कराए।
मादा पशुओं के आहार में कैल्शियम की मात्रा शामिल करने से दूध ज्वार रोग होने की संभावना कम हो जाती हैं। पिछली ब्यांत में दूध ज्वार रोग से प्रभावित पशुओं के आहार में खनिज तत्वों की मात्रा कम करें।
शुष्क काल की प्रारंभिक अवधि में थानेले रोग होने का खतरा अधिक होता हैं। इसलिए इस रोग के रोकथाम पर विशेष ध्यान देते हुए पशु चिकित्सक की परामर्श के अनुसार पशुओं के थानों में दवा डलवाए।
शुष्क काल के दौरान मादा पशुओं को पेट के कीड़े मारने की दवा दी जा सकती हैं। लेकिन, पेट के कीड़े मारने की दवा देने से पहले इस बात का ध्यान रखें कि दवा गभिन या गर्भवती पशुओं के लिए सुरक्षित हो।
मादा पशुओं के दूध को सुखाने की प्रक्रिया
मादा पशुओं के दूध बंद करने के लिए सबसे पहले उनको दिए जाने वाले आहार पर ध्यान देना जरूरी हैं। दूध सुखाने के लाभग 15 दिनों पहले से मादा पशुओं के आहार की मात्रा को कम करें।
मादा पशुओं के आहार में ऊर्जा वाले तत्वों को कम करें और फाइबर युक्त तत्वों की मात्रा बढ़ाए। दूध सुखाने के 7 से 12 दिनों पहले से मादा पशुओं को दाना खिलाना बंद कर दें।
दूध की मात्रा कम हो जाने पर दूध निकलना बंद कर दें। दूध निकलना बंद करने के बाद पशुओं को थानेला, दूध ज्वार जैसे विभिन्न रोगों एवं परेशानियां से बचाने के लिए पशु चिकित्सक से परामर्श करें। इसके बाद पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार धीरे-धीरे आहार को बढ़ाए।
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