कृषि जागृति

किसान इस पोस्ट को ध्यान से पढ़े और जानें फफुंदनाशक को ज्यादा स्प्रे करने के नुकसान

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krishijagriti5

फफुंदनाशी फसलों से रोगमुक्त उत्पाद प्राप्त करने के लिए खेती में फफुंदनाश के नियमित उपयोग की आवश्यकता होती है। साथ ही फफूंदनाशी के गुणों का ज्ञान होना प्रभावी रोग नियंत्रण के लिए आवश्यक है। किसी भी फफूंदनाशी का उपयोग करने से पहले जरुरी है की समस्या को पहचाना जाए। किसी भी फफूंदनाशी का उपयोग करने से पहले हजारे किसान भाइयों को फसलों की बीमारी की पहचान करने की आवश्यकता है। केवल अंदाजा नहीं लगाना चाहिए की ये बीमारी हो सकती है।

बीमारी की सटीक पहचान सुनिश्चित होने पर उसके लिए सबसे बढ़िया उत्पाद की अनुसंशा की जा सकती है। हमारे व्हाट्सप्प ग्रुप में दो कृषकों द्वारा फोटो भेजे गए। एक फोटो था गेहूं में पत्तियों के पीले होने से सम्बंधित उसके लिए एक सलाहकार ने फफूंदनाशी रेकमेंड किया और दूसरे सलाहकार ने कीटनाशी। जबकि समस्या कोई दूसरी भी हो सकती थी। हर बार फसल के पीले होने का कारण फफूंद या कीड़ा ही नहीं होता है। बल्की दूसरे कारण भी होते हैं।

शरीर में हीमोग्लोबिन कम होने का कारण हमेशा आयरन की कमी ही नहीं होता कभी कभी वो पीलिया, मलेरिया भी हो सकता है। ऐसे ही एक दूसरा फोटो खरबूजे का था उसमें रिकमेन्डेशन थी कॉपर ऑक्सी क्लोराइड और स्ट्रेप्टोसायक्लीन। एक फफूंदनाशी और बैक्टीरियासाइड दूसरा एंटीबायोटिक। मैंने प्रश्न कर लिया रिकमेन्डेशन किस पहचान के आधार पर की गयी है। जवाब था प्रिवेंटिव उपचार है। जब बिमारी ही आ गयी तो फिर बचाव के लिए ऐसे ही स्प्रे बताने का क्या तुक है?

मुझे पता है किसान को स्प्रे के बाद भी रिजल्ट नहीं मिलना है क्योंकि समस्या का सही निदान किया ही नहीं गया है। तो अंदाज़े से हमेशा बचना चाहिए। बीमारियां पौधे के पूरे जीवन काल में कभी भी लग सकती हैं। और बीमारी तभी लगती है जब पौधों में पोषक तत्वों की कमी होती हैं। जिससे पौधे रोग व कीटों से लड़ नहीं पाते।अलग अलग अवस्थाओं में इनके लक्षण भी अलग अलग हो सकते हैं। इसलिए हमारे किसानों को उन सभी फसलों के बारे में जिन्हें वो उगाते हैं उनकी बीमारियों के बारे में जानकारी होना चाहिए।

आपकी जानकारी आपको सही समय पर रोग निदान करने और समय पर सही उपचार करने में मदद करेगी। एक ही फसल में एक ही बिमारी के लिए भी, अलग अलग स्प्रे हो सकता है जो फसल की अवस्था की वजह से बदल जाता है। बिमारियों की जानकारी हमारे किसानों को ज्यादा से ज्यादा होनी चाहिए खास तौर पर उन लोगों के लिए जो अनेकों तरह की फसल लगाते हैं। बुआई से लेकर कटाई तक होने वाली बीमारियों की जानकारी होने पर आप अपना स्प्रे शेड्यूल बना सकते है।

फफूंदनाशियों की कार्य विधि के बारे में भी जानना आवश्यक होता है। फफूंदनाशी दो प्रकार के होते हैं पहले संपर्क प्रकार के, दूसरे अंतर्प्रवाही प्रकार के। संपर्क प्रकार में फफूंदनाशी का रोगजनक से संपर्क होना आवश्यक है वहीं अंतर्प्रवाही के लिए ऐसी स्थति की जरुरत नहीं होती, वो जहां फफूंद है वहां जाकर अपना काम करता है। हर फफूंदनाशी के काम करने का तरीका अलग अलग प्रकार का होता है जैसे कोई बीजाणुओं का अंकुरण रोकता है, कोई स्वशन क्रिया को रोकता है।

तो कोई किसी अन्य गतिविधि में रुकावट डालता है और उसी के अनुसार वैज्ञानिकों द्वारा अलग अलग प्रकार की फफूंद के लिए अलग अलग फफूंदनाशियों की रिकमेंडेशन की हुई है। अच्छे रोग नियंत्रण के लिए, सही फफूंदनाशी के साथ-साथ उसकी सही मात्रा और पूरे पौधे का कवर होना जरुरी है।किसी किसान द्वारा बताया गया 2 स्प्रे के बाद भी फसल में सुधार नहीं है। जब खोजबीन की तो पता चला पौधे पर स्प्रे में पानी की मात्रा बहुत काम उपयोग की जा रही है।

ऐसे में पौधे में जहां दवाई नहीं पहुंची वहां पर बीमारी बढ़ रही थी और जो आशातीत परिणाम मिलने चाहिए थे नहीं मिल रहे थे। अच्छी सुरक्षा के लिए संपूर्णता की आवश्यकता होती है, अब आप माने या ना माने संपूर्णता मिलती नही है, यह पैदा होती है आपके खेतों में, जो केवल जैव उर्वरक के माध्यम से ही संभव है। फसलों की पत्तियों के नीचे, सभी सतहों पर छिड़काव जैविक कीटनाशक का स्प्रे किया जाना चाहिए। बहुत बार पट्टी इस प्रकार की होती है जिसपर दवाई रुकती नहीं है ऐसे में चिपको स्प्रे का प्रयोग बहुत अच्छे परिणाम देता है।

जैविक कीटनाशकों का स्प्रे करने के लिए समय का निर्धारण फसल में लक्षण प्रकट होते ही किया जाना चाहिएं। समय के साथ-साथ बिमारी भी बढ़ती है और फिर आशानुरूप परिणाम नहीं मिलते है। इसके अतिरिक्त फसल का प्रबंधन भी रोग के आक्रमण के लिए महत्वपूर्ण है। कमजोर फसल, घनी फसल जिसमें हवा और प्रकाश का आवागमन बाधित हो, रोग आने की सम्भावना अधिक होती है। सही प्रबंधन से फसल में रोग आने की सम्भावना कम होती है तो उसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए।

आखिर में हजारे किसान भाइयों के साथ समस्या यह है कि वे बिमारियों की पहचान नहीं कर पाते। दूसरा की कौन सी फसल में किस मौसम में कितने तापमान पर कौन सा रोग व किट लगते है, यह भी नही पता अभी तक हमारे कई किसानों भाइयों को। इस सब के लिए जरूरी है। हमारे किसान भाइयों को कृषि जागृति चलो गांव की ओर की कृषि संबंधित अच्छी-अच्छी पोस्ट पढ़ते रहे और बार-बार पढ़ते रहें। बाकी परेशान ना होने की कोई जरूरत नहीं है कृषि जागृति हैं ना सबसे बड़ा समाधान जैव उर्वरक यानी जैविक खेती हर रोग व कीटों का समाधान।

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