कृषि समाचार

हरियाणा: हर जिले में उपलब्ध होगी, सिंचाई हेतु ड्रोन की सुविधा, पोर्टल पर पंजीकरण अनिवार्य

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krishijagriti5

हरियाणा सरकार ने यूरिया के छिड़काव में ड्रोन तकनीक उपलब्ध करवाने का निर्णय लिया है। सरकार द्वारा कृषि विभाग के अधिकारियों को हर किसान के खेत तक ड्रोन की सुविधा पहुंचाने के निर्देश दिए गए है। सरकार ने इस तकनीक को जल्द किसान तक पहुंचाने के लिए प्रेत्येक जिले का लक्ष्य निर्धारित किया है। सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि प्रदेश सरकार द्वारा नैनो यूरिया का छिड़काव ड्रोन से करने की सुविधा सभी को उपलब्ध करवाने का फैसला लिया है। सरकार ने इसे किसानों को बड़े पैमाने पर उपलब्ध करवाने की तैयारी कर ली है।

यह आवेदन ऑनलाइन पंजीकरण से ही हो पाएगा। इसके लिए किसान को अपने मोबाइल या फिर सीएससी सेंटर से मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल पर पंजीकरण करना होगा। इस पंजीकरण के दौरान ही उसे नैनो यूरिया के लिए भी आवेदन करना होगा और आवेदन के साथ ही फीस भी जमा करवानी होगी। प्रवक्ता ने आगे बताया कि किसानों को ड्रोन से छिड़काव के लिए कृषि विभाग की ओर से ड्रोन निशुल्क उपलब्ध करवाया जायेगा। हालांकि, किसान को प्रति एकड़ 100 रुपए का शुल्क देना होगा।

उदाहरण के लिए अगर किसान पांच एकड़ में छिड़काव करना चाहता है, तो उसे 500 रुपए का शुल्क देना होगा। वर्तमान समय में भी किसानों द्वारा सरसों व गेहूं में यूरिया का छिड़काव किया जा रहा है। किसान बड़ी संख्या में नैनो यूरिया का प्रयोग भी कर रहे हैं। विभाग की ओर से नैनों यूरिया भी किसानों को उपलब्ध करवा जा रहा है। प्रवक्ता ने कहां कि इस योजना को ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी कृषि विभाग को सौंपी गई हैं।

विभाग के अधिकारी हर गांव के किसानों को जानकारी उपलब्ध करवाएंगे और उन्हें कम में यूरिया के छिड़काव व नैनो यूरिया के लाभ बताएंगे। इससे किसान का छिड़काव में लगने वाला समय कम होगा। प्रवक्ता ने बताया कि एक बारी में ड्रोन 10 लीटर तक तरल यूरिया लेकर उड़ सकता है। फसल में यूरिया के छिड़काव को एक जगह खड़े होकर ड्रोन की सहायता से कम समय में अधिक दूरी तक पहुंचाया जा सकता हैं।

अहम बात यह है कि मानव शरीर पर छिड़काव का कोई दुष्प्रभाव नहीं होगा। ड्रोन की मदद से किसान एक दिन में आसानी से 20 से 25 एकड़ में छिड़काव कर सकते हैं। खेतों में छिड़काव करते समय जहरीले जीव जंतु के काटने का डर भी नहीं रहेगा। साथ ही किसान को खेत में फसल के बीच नहीं जाना पड़ेगा और फसल के टूटने का खतरा भी नहीं रहेगा।

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