लौह पोषक तत्वों यानी आयरन किसी भी फसल के पौधो की वृद्धि और अच्छे विकास के लिए एक बहुत ही आवश्यक पोषक तत्व है। यह क्लोरोफिल के उत्पादन में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो प्रकाश संश्लेषण के लिए अति आवश्यक है। किसी भी फसलों में आयरन की कमी होने के कई परिणाम हो सकते हैं। तो आइए जानते हैं कृषि जागृति के इस पोस्ट में विस्तार में।
क्लोरिसिस: फसलों में आयरन की कमी से क्लोरोसिस हो सकता है, यानी कहने का मतलब है क्लोरोसिस की कमी के कारण पौधो की पत्तियों का पीला पड़ना एवं पत्तियों में हरी नसें भी हो सकती है, जो आयरन की कमी का एक विशिष्ट लक्षण है।
रुका हुआ पौधा का विकास: कभी कभी अपने अपने फसलों को देखते होंगे की उनकी वृद्धि रुक जाती हैं और निरंतर बढ़ नहीं बाते है, ये आयरन की कमी से फसलों के पौधों का विकास रुक जाता है, जो पौधे आकार में छोटे होते हैं और स्वस्थ पौधों की तुलना में कम पत्तियां होती है।
कम उपज: आयरन की कमी से फसल की उपज काफी कम होती हैं। यह आपकी फसल में फूल, फल या बीज पैदा करने में मदद करता हैं। जिसके परिणामस्वरूप कम उपज हो सकती हैं। जैसा कि आप अपने फसलों में देखते होंगे की पौधों में जितने फूल लगते है उन सभी में फल नहीं लगते है अगर लग भी जाते है तो तुरंत झड़ जाते है। ये आयरन की कमी से होता हैं।
रोगों के प्रति संवेदनशीलता: आयरन की कमी वाले पौधों में बीमारियों और कीटो के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। वे सूखे या अत्यधिक तापमान जैसे पर्यावरणीय तनावों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। जो की तरह तरह के रोग व किट लगते रहते हैं।
परिपक्वता में देरी: आयरन की कमी से फसलों की परिपक्वता में देरी होती हैं। पौधों को परिपक्वता तक पहुंचने में अधिक समय लगता हैं, जिससे कटाई में देरी हो सकती हैं और उपज की गुणावता कम हो सकती हैं।
फसलों में आयरन की कमी होने से बचाने के लिए यह सुनिश्चित करना अति आवश्यक है कि मिट्टी में आयरन की मात्रा पर्याप्त हो। लौह तत्व को जैव उर्वरकों या कार्बिक पदार्थों के माध्यम से मिट्टी में डाला जा सकता हैं। चूंकि मिट्टी का पीएच लोहे की उपलब्धता को प्रभावित करता हैं, इसलिए मिट्टी के पीएच स्तर को बनाए रखना भी काफी महत्वपूर्ण है।
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