बदलते मौसम एवं लगतार बढ़ते प्रदूषण मैं पशुओं के स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखना पशुपालकों के लिए किसी बढ़ी चुनौती से कम नहीं हैं। अक्सर पशु किसी रोग की चपेट में आ जाते हैं। केवल रोग ही नहीं, पेट के कीड़े, जू किलनी, जैसी परजीवी कीट भी पशुओं के स्वास्थ्य को खराब करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। पशुओं पर हुए कुछ शोधों के अनुसार परजीवी कीटो के कारण दुधारू पशुओं के दूध उत्पादन में प्रतिदिन 1.16 लीटर की कमी आती हैं।
पेट के कीड़े पशुओं को कैसे करते हैं प्रभावित!
पशुओं का वजन कम होने लगता हैं। जिससे पशुओं को पाचन संबंधी समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। दूध उत्पादन में भी काफी कमी आती हैं।पशुओं की प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होती हैं।रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती हैं। पशुओं का पेट सामान्य से बड़ा नजर आने लगता हैं।
आखों से पानी आने लगता हैं। पशुओं को दस्त की समस्या होने लगती हैं। पशुओं के शरीर में खून की कमी हो जाती हैं। मादा पशुओं को गर्भ धारण मैं समस्या आती हैं। पेट के किड़ो से परेशान पशु कई बार मिट्टी, दीवार जैसे अखद्ध वस्तुओ को चाटने लगते हैं। पशुओं के पेट में मुख्यत: 3 तरह के कीड़े पाए जाते हैं। जिनमे पताकृमि, फीताकृमि एवं गोलकृमि शामिल हैं।
पताकृमि: इस श्रेणी में आने वाले कीड़े पते की तरह चपटे आकार के होते हैं। इससे प्रभावित पशुओं में खून की कमी, सुध उत्पादन में कमी, उतको की क्षति जैसी समस्याएं होती हैं।
फिताकृत: इस तरह के परजीवी कीट फीते की तरह लंबे होते हैं। सामान्यत: यह पशुओं की आंत में पाए जाते हैं। यह कीट पशुओं के पोषक तत्वों को ग्रहण करके अपना भरण पोषण करते हैं। इस कीट का लार्वा पशुओं के विभिन्न अंगों में सिस्ट बनाते हैं।
गोलाकृत: इस श्रेणी में आने वाले कीटो का शारीरिक आकार बेलन की तरह होता हैं। ये कीट पशुओं में खून की कमी, कमजोरी, न्यूमोनिया, अंधापन, गांठ बनना जैसे विकारों का कारण बनते हैं।
पशुओं के पेट में कीड़े पड़ने के मुख्य कारण
पशु आवास में गंदगी उनके पेट में कीड़े होने का एक सबसे मुख्य कारण है। अशुद्ध आहार ग्रहण करने से भी पशुओं के पेट में कीड़े हो सकते हैं
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