केला की फसल के लिए पोटाश एक बहुत ही महत्वपूर्ण पोषक तत्व माना जाता है। किसी भी फसल में इसकी कमी होने पर कतई अच्छी उपज नही प्राप्त हो सकता है। केला की फसल में इसकी कमी को दूर करने के लिए 10 किलोग्राम जी-सी पावर और 10 किलोग्राम जी-प्रोम एडवांस और 1 लीटर-जी पोटाश को किसी छायादार स्थान पर मिलाकर 30 मिनट हवा लगने के बाद प्रति केले के पौधों के जड़ों में 100 से 150 ग्राम देना चाहिए।
नत्रजन एवं पोटाश जैसे पोषक तत्वों को 2 महीने के अंतर पर या 3 महीने के अंतर पर ,उत्तक संवर्धन की फसलों में 9वे महीने तक और प्रकंद द्वारा तैयार फसल में 11/12 महीने तक उर्वरकों के रूप में प्रयोग करते है। फास्फोरस की पूरी मात्रा को रोपाई से पूर्व या रोपाई के समय ही दे देना चाहिए। पोटेशियम की कमी से वृद्धि में उल्लेखनीय कमी आती है, अंतराल बहुत कम होता है, पौधे का समय से पहले पीलापन होता है।
पेटीओल्स (डंठल) के आधार पर बैंगनी भूरे रंग के पैच दिखाई देते हैं और गंभीर मामलों में प्रकंद (कॉर्म) का केंद्र भूरा, पानी से लथपथ विघटित कोशिका संरचनाओं का क्षेत्र जैसा दिखता है। फल खराब आकार के और विपणन के लिए अनुपयुक्त होते हैं। विभाजन द्वितीयक शिराओं के समानांतर विकसित होते हैं और लैमिना नीचे की ओर मुड़ जाती है, जबकि मध्य शिरा झुक जाती है और टूट जाती है, जिससे पत्ती का बाहर का आधा भाग लटक जाती है।
जानिए इसका सुधारात्मक उपाय: केला की खेती हेतु खाद एवं उर्वरकों की सस्तुती मात्रा का प्रयोग करना चाहिए। इस तरह के लक्षण गायब होने तक साप्ताहिक अंतराल पर KCl 2% का पर्ण छिड़काव करें।
PC: प्रोफेसर डॉ एसके सिंह विभागाध्यक्ष, पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी, प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना। डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर, बिहार
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