गहन शोध के बाद शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में मीठे बांस की एक विशेष प्रजाति को तैयार करने में सफलता हासिल कर ली है। यह शोध बिहार के जिले भागलपुर में टीएनबी कॉलेज स्थित प्लांट टिश्यू कल्चर लैब में किया गया। यहां मीठे बांस के पौधे व्यावसायिक दृष्टि से वृहद स्तर पर तैयार किए जा रहे हैं। किसान इस व्यवसाय को अपनाकर अपनी आय को दोगुना कर सकेंगे।
अब इससे ग्रामीण आर्थिक लोगों को समृद्ध करने हेतु नई संभावनाओं का आगमन होगा। बांस की खेती बिहार की अर्थव्यवस्था को बदलने में पूरी तरह सक्षम हो सकती है, क्योंकि वर्तमान समय में इस बांस की मांग अधिक है। आज विश्व में कई देशों में इससे खाद्य उत्पाद भी बनाएं जाते हैं। इसके साथ ही इस प्रजाति का उपयोग दवाइयां बनाने में भी किया जा रहा है।
सभी मौसम व मृदा में होगी इस मीठे बांस की खेती
बांस की इस नई प्रजाति की खेती किसी भी मौसम व सभी तरह की मृदा यानी मिट्टी में की जा सकेगी। परीक्षण के दौरान एनटीपीसी से निकले राख के ढेर पर भी इसके पौधे उगाने में शोधकर्ताओं को सफलता हासिल हुई है।
दवाई और खाद्य उत्पादों में भी उपयोगी
खाद्य प्रसंस्करण इकाई के माध्यम से बांस के इन पौधों से विभिन्न प्रकार के खाद्य उत्पाद भी तैयार किए जा सकेंगे। इनका उपयोग चीन, ताइवान, सिंगापुर, फिलीपींस आदि देशों में बड़े स्तर पर चिप्स, अचार, कटलेट जैसे उत्पाद तैयार करने में किया जाता है।
अब भारत में भी इसका उपयोग व्यावसायिक तौर पर हो सकेगा। इससे खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को काफी बढ़ावा मिलेगा। इसके साथ ही इन बांस के पौधों से एंटीऑक्साइड और कैंसर जैसे रोगों की दवाइयां भी बनाई जा सकेगी।
बायो सीएनजी गैस और एथेनॉल भी होंगे तैयार
बांस के इन पौधे से कार्बन डाइऑक्साइड को अच्छी तरह से अवशोषित कर कार्बनिक पदार्थ बनाते हैं। ये पदार्थ मृदा में मिलाकर, मृदा की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाते हैं। इस मीठे बांस की मदद से बायो एथेनॉल, बायो सीएनजी और प्रजातियां पाई जाती हैं और इसका औद्योगिक उपयोग भी है। मीठे बांस की खेती से पेपर इंडस्ट्री, फर्नीचर सहित अन्य उद्योगों को काफी बढ़ावा मिलता है। निकट भविष्य में बांस को प्लास्टिक का सबसे बड़ा विकल्प माना जा रहा है।
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