पोषक तत्वों की पूर्ति फसलों की वृद्धि उपज और गुणवत्ता विशेषताओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि हम भारत में मेन्थॉल पुदीने की खेती (Cultivation of Mint) के अर्थशास्त्र के बारे में चर्चा करें, तो परिणाम आया कि यह पारंपरिक खेती से आय आधारित खेती में स्थानांतरित हो रहा है। इसलिए यह जानना बहुत आवश्यक है कि भारत में मेंथा/पुदीना/पुदीने की खेती को कैसे बेहतर बनाया जाए।
पेपरमिंट का वैज्ञानिक नाम मेंथा पिपेरिटा है। यह एक यूरोपीय पौधा है। दुनिया के कई देशों में इसकी खेती (Cultivation of Mint) की जाती है। यह 30 से 60 सेमी ऊँचा, सीधा, सुगंधित पौधा होता है। इसका तेल या जूस दवा, पर्सनल केयर उत्पादों में प्रयोग किया जाता है। इसका तना सीधा, बैंगनी, हरा, चतुर्भुज और शाखाओं वाला होता है।
आयुर्वेद में पुदीने का सबसे बड़ा महत्व बताया गया है। सूखी खांसी में पुदीना बहुत फायदेमंद होता है क्योंकि इसका मेन्थॉल यौगिक गले को आराम पहुंचाता है। इसमें एंटीवायरल, एंटीऑक्सीडेंट और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो कई स्वास्थ्य समस्याओं को ठीक करने में कारगर साबित होते हैं। इसके अलावा इसमें मेन्थॉल, आयरन, फैट, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, मैंगनीज, विटामिन सी, विटामिन ए और राइबोफ्लेविन जैसे कई पोषक तत्व भी मौजूद होते हैं।
भारत पुदीना का प्रमुख उत्पादक बन गया है। पुदीना की खेती (Cultivation of Mint) आज भारत में एक प्रमुख नकदी फसल बन गई है। मेंथा की खेती कर किसान लाखों रुपये कमा रहे हैं। यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में किया जाता है। इसकी प्रमुख प्रजातियों में मेंथा स्पाइकाटा एमएसएम-01, कोसा और हिमालय गोमती शामिल हैं।
खेत की तैयारी के लिए 100 से 150 किलोग्राम सड़ी गाय का गोबर/केंचुआ खाद/राख/भुनी मिट्टी में 1 लीटर जी-बायो फॉस्फेट मिलाकर 24 घंटे छाया में रखना चाहिए और खेत में बिखेर कर जुताई करनी चाहिए। प्रति एकड़।
बुवाई के समय – 10 किग्रा जी-सी पावर, प्रति एकड़ भूमि में 8 किग्रा जी-वैम (दो बैग) और एक लीटर जी-एनपीके जैव उर्वरक का प्रयोग करें। ऐसा करने से शुरू से ही फसल और मिट्टी के पोषक तत्वों की पूर्ति करने में मदद मिलती है। तो किसान भाइयों, आपने पढ़ा कि कैसे पुदीना की खेती आपके लिए बहुत लाभदायक खेती साबित हो सकती है।
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