खीरे की फसल में कई तरह के रोग लगते है। जिसमें चितकबरा रोग, मोजैक वायरस रोग, पत्तों पर सफेद धब्बा रोग आदि शामिल है। इन रोगों के कारण खीरे की पैदावार में भारी कमी देखने को मिलती है। बात करे चितकबरा रोग की तो इस रोग के लक्षण सबसे पहले खीरे के पौधों की पत्तियों पर नजर आते हैं। खीरे के पौधों में फल आने के बाद फलों पर भी इस रोग के लक्षण उभरने लगते हैं। जिससे खीरे की गुणवत्ता पर बहुत बुरा असर पड़ता है। तो आइए जानते हैं कृषि जागृति के इस पोस्ट में कि खीरा की फसल में लगने वाले चितकबरा रोग पर नियंत्रण के जैविक विधि है!
खीरे की फसल में चितकबरा रोग लगने का कारण
यह एक फफूंद जनित रोग है इसलिए हमारे किसान भाई जब भी खीरे की बुआई करे तो खेत की मिट्टी और बीज को उपचारित करके ही बुआई करें। इससे मिट्टी जनित और बीज जनित रोग को पनपने की संभावना कम हो जाती है।
चितकबरा रोग से खीरे की फसल को होने वाले नुकसान
इस रोग से प्रभावित खीरे के पत्ते मुझाने लगते हैं।
फिर खीरे के पौधों में फल लगने पर फल के निचले हिस्से पीले रंग के नजर आते हैं।
यह रोग बढ़ने पर खीरे के पौधों के विकास करने में अड़चन आती है।
खीरे की फसल में लगे चितकबरा रोग पर नियंत्रण के जैविक तरीके
खीरे की फसल में लगे इस रोग से फलों को बचाने के लिए शुरुआती चरण में ही 150 लीटर पानी के एक लीटर जी-बायो फॉस्फेट एडवांस को मिलाकर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करें। बेहतर परिणाम के लिए 10 दिन के बाद पुनः स्प्रे करें।
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