छींद का फल यानी खजूर की ही देसी प्रजाति है। छींद हमारे भारतीय ग्रामीण अंचलों की एक बड़ी ही महत्वपूर्ण वानस्पतिक विरासत है। छींद के तने, जड़, छाल, पत्तियों एवं फलों के खूब सारे औषधीय गुण हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के हिसाब से भी छींद काफी महत्वपूर्ण है। चाहे चटाई बनाना हो या घरों की छत और बाड़ बनाना हो या फिर हाथ के पंखे या झाड़ू, छींद की पत्तियां खूब इस्तेमाल की जाती है।
भागदौड़ भरे इस जीवन में हम छींद को भूलते चले जा रहे हैं। शहरीकरण की भेंट चढ़ने वाले कई महत्वपूर्ण पेड़ों में से छींद भी एक है। आप सभी के दोस्त दीपक आचार्य के गृह जिले का नाम भी इसी पेड़ की बहुतायत की वजह से रखा गया है, छिंदवाड़ा। बड़े ही दुर्भाग्य की बात है कि इस जिले में इस पेड़ की संख्या में तेजी से घटाव आया है।
हमारे आदिवासी अंचलों में छींद को लेकर कई तरह की पौराणिक मान्यताएं भी हैं। खैर, मैं आज इसके फलों के बारे में कुछ जानकारियां आप सभी दोस्तों से साझा कर रहा हूं। छींद के फल बेहद टेस्टी होते हैं, कच्चे फल कसैले और गले में लगने वाले होते हैं लेकिन पकने के बाद ये बेहद मीठे और स्वादिष्ट लगते हैं। फलों के भीतर खजूर की तरह कठोर बीज पाया जाता है।
इसके पास कई औषधीय गुणों की खान है। आदिवासी इलाकों में जानकार छींद के पके फलों को एनीमिया से ग्रस्त लोगों को खिलाते हैं। लगभग 100 ग्राम पके हुए छींद के फलों को प्रतिदिन खाने की सलाह दी जाती है। इसके पके फलों में माइक्रो न्यूट्रिएंट्स खूब पाए जाते हैं और शरीर के लिए आयरन भी खूब देते हैं। एनिमिक लोगों में विटामिन B 12 के लेवल को बेहतर बनाने के लिए भी ये फल काफी खास हैं।
महाराष्ट्र के अहमदनगर में मुझे एक हर्बल मेडिसिन एक्सपर्ट ने बताया था कि कमर और पुट्ठों के दर्द में तेजी से राहत देने के लिए वे लोगों को पके हुए छींद खाने की सलाह देते हैं। छींद के फल एनाल्जेसिक भी होते हैं यानी इनमें दर्द निवारक गुण भी खूब होते हैं। अभी कुछ दिनों पहले ही पातालकोट यात्रा से लौटा हूं।
जंगल में पके हुए छींद देखकर हमारी ‘हर्बल वर्बल’ टोली बंदरों की सेना की तरह छींद पर टूट पड़ी, वजह सिर्फ इतनी थी कि लंबी हाइकिंग के बाद हम सबके के बदन टूट रहे थे और कुछ दूरी तक चलने के बाद हमारी टीम के एक जानकार को छींद दिख गया और हमारी समस्याओं को समाधान भी मिल गया।
हर एक बन्दे ने दो-दो मुट्ठी छींद चबा मारा और अगले 10 मिनिट में हमारी फौज सीना तान चुकी थी, थकान और दर्द रफूचक्कर हो चुका था। अब इससे ज्यादा साक्षात प्रमाण और क्या दिए जा सकते हैं? छींद का फल बाजार में बिकने वाले हर टॉनिक का बाप है। वर्टिगो और बार-बार सर चकराने की समस्या में भी छींद के पके फल बढ़िया काम करते हैं।
डायटरी फाइबर्स की मात्रा भी खूब होने की वजह से ये पाचन दुरुस्त करता है और पेट की कई समस्याओं की छुट्टी कर मारता है। कैल्शियम भी खूब पाए जाने की वजह से ये हमारे हड्डियों के लिए भी उत्तम है। गाँव देहातों में इसकी जड़ों को खोदकर दातून की तरह उपयोग में लाया जाता है, पायरिया, सड़ांध और दांतों की मजबूती के लिए इसे कारगर माना जाता है।
इसके फलों के गुणों के बारे में गाँव देहात और जंगल लैबोरेटरी के बुजुर्ग जब अपनी पोटली खोलते हैं तो हर बार यही सोचता रह जाता हूं कि अब तक इस देहाती फल का इस्तेमाल कमर्सियल लेवल पर क्यों नहीं हुआ है? भारत के अनेक प्रान्तों में पाए जाने इस फल को अब तक बाज़ार तक आने का मौका क्यों नहीं मिला?
क्या उन लोगों की किस्मत वाकई इतनी खराब है जिन्होंने इसे अब तक चखा नहीं? रास्ते खोजे जाने चाहिए, पर रास्तों को खोजने के लिए भटकना भी होगा। छींद के औषधीय गुणों को लेकर जितने भी क्लेम्स हैं, इस पर डिटेल्ड साइंटिफिक स्टडी भी होनी चाहिए। मैं ठहरा फुरसतिया और घुमक्कड़,
मेरा काम गाँव देहात के पारंपरिक नुस्खों, जीवनशैली और रहन सहन के सादे तौर तरीकों को आप तक पहुंचाना है ताकि थोड़ा भटकाव आप में भी आए। ये अपने देश का ज्ञान है और इस ज्ञान में दम बहुत है। फिलहाल छींद पक चुका है, कुछ जुगाड जमा पाएं तो चख जरूर लीजियेगा, किस्मत और सेहत के कपाट खुल जाएंगे भटको तो सही, खोजो वो पगडंडी जो मंजिल तक पहुंचती ही नहीं। श्रेय: दीपक आचार्य
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