पशु पालन

पशुओं में हो रहे एफेमेरल फीवर के कारण, लक्षण एवं बचाव के उपाय!

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krishijagriti5

पशुओं में हो रहे एफेमेरल फीवर को सामान्य भाषा में अढ़ैया बुखार के नाम से जाना जाता हैं। इस रोग से गाय एवं भैंस दोनों ही प्रभावित होते हैं। सामान्यतः पशुओं में यह बुखार 3 दिनों तक रहता हैं। मक्खी मच्छर इस रोग के होने का प्रमुख कारण होते हैं। तो आइए जानते हैं कृषि जागृति के इस पोस्ट के मध्यम से हम इफेमेरल फीवर के कारण, लक्षण एवं बचाव के उपायों के बारे में विस्तार से।

इफेमेरल फीवर के कारण

गर्मी में वातावरण में नमी होने पर यह रोग होता हैं। वर्षा के मौसम में भी इस रोग का प्रकोप होता हैं। सैंड फ्लाई नामक एक विशेष मक्खी के द्वारा यह रोग काफी फैलता है।

मच्छरों के काटने से भी यह रोग फैलता हैं।प्रभावित पशुओं के संपर्क में आने से अन्य पशु प्रभावित हो सकते हैं। हवा के द्वारा भी इस रोग के वायरस फैलते हैं।

इफेमेरल फीवर के लक्षण

पशुओं को बुखार हो जाता हैं। प्रभावित पशुओं की आंखों से आसू निकलने लगते हैं। पशुओं को नाक बहना, अवसाद, (डिप्रेशन) लंगड़ापन, सांस लेने में कठिनाई, जैसी समस्याएं होती हैं।
पशुओं के दूध उत्पादन में अचानक कमी आ जाती हैं।

एफेमेरल फीवर से बचाव

रोग से बचाने के लिए साफ सफाई का ध्यान रखें। साफ सफाई नही होने से मक्खी एवं मच्छरों का प्रकोप अधिक होता हैं। प्रभावित पशुओं के रहने की अलग व्यवस्था करें। पशुओं को पूर्ण रूप से आराम करने दे। रोग के लक्षण नजर आने पर तुरंत पशु चिकित्सक से परामर्श करें।

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