एंगुलर लीफ स्पॉट एक विनाशकारी बीमारी है जो कद्दू वर्गीय फसलों के पौधों को प्रभावित करती है। जिससे कद्दू वर्गीय फसलों की पैदावार कम हो जाती है और उत्पादकों को आर्थिक नुकसान होता है। कृषि जागृति के इस पोस्ट में हम खीरे की फसल में कोणीय पत्ती धब्बे वाले रोग के कारणों, लक्षणों और विभिन्न प्रबंधन रणनीतियों के बारे में विस्तार से जानेंगे। कोणीय पत्ती का धब्बा रोग जिसे वैज्ञानिक रूप से स्यूडोमोनास सिरिंज पी.वी. लैक्रिमैन्स के नाम से भी जाना जाता है।
यह एक जीवाणु रोग है जो मुख्य रूप से खीरे और खरबूजे और स्क्वैश सहित कुकुर्बिटेसी परिवार के अन्य सदस्यों के फसलों को प्रभावित करता है। इस रोग की विशेषता यह है कि पत्तियों पर कोणीय आकार के साथ पानी से लथपथ धब्बे बनते हैं। जिससे पत्तियां जल्दी गिरने लगती हैं और फलों की गुणवत्ता कम हो जाती है एवं समग्र फसल को नुकसान होता है। कद्दू वर्गीय फसलों को इस रोग से बचाने के लिए हमारे किसान भाइयों को जैविक प्रबंधन करना अति आवश्यक है।
कोणीय पत्ती धब्बा रोग के कारण और स्थितियां: कोणीय पत्ती का धब्बा रोग, स्यूडोमोनास सिरिंज पीवी लैक्रिमैन्स जीवाणु के कारण होता है। यह रोग दूषित बीज, सिंचाई जल या संक्रमित पौधे सामग्री के संपर्क से फैलता है। यह गीली और नम स्थितियों में भी पनपता है, जो बैक्टीरिया के विकास और संक्रमण के विकास के लिए आदर्श हैं। यह हवा से चलने वाली बारिश, कीड़ों या संक्रमित पौधों को छूने से भी फैलता है। इस लिए हमारे किसान भाई उन्नत किस्म के बीजों का चयन करें और रोगप्रतिरोधी बीजों का चयन करें।
कोणीय घाव: सबसे विशिष्ट लक्षण पत्तियों पर कोणीय एवं पानी से लथपथ धब्बों का दिखना है। ये घाव अक्सर पत्ती की शिराओं द्वारा सीमांकित होते हैं और शुरू में पारभासी या हल्के हरे रंग के दिखाई देते हैं।
पत्ती का पीला पड़ना: जैसे-जैसे यह रोग फसलों पर बढ़ता है, धब्बें पीले हो जाते हैं, और शिराओं के बीच का ऊतक परिगलित हो जाता है।
बैक्टीरियल रिसना: फसलों की गीली स्थितियों में, संक्रमित पत्तियों से चिपचिपा एवं पीले रंग का बैक्टीरियल रस निकलता है।
पतझड़: इस रोग के गंभीर संक्रमण से फसल पतझड़ हो जाता है, जिससे पौधे की प्रकाश संश्लेषण और स्वस्थ फल पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है।
फलों के लक्षण: इस रोग के कारण फल आमतौर पर कम प्रभावित होते हैं, लेकिन कोणीय पत्ती का धब्बा रोग फल की त्वचा पर धब्बा पैदा कर सकता है, जिससे वे विपणन योग्य नहीं रह जाते हैं।
PC: प्रोफेसर डॉ एसके सिंह विभागाध्यक्ष, पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी, प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना। डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर, बिहार
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